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________________ 275 P.P.Ad Guntasun MS | बढ़ चली। इस प्रकार सब को काम-पीड़ा सताने लगी। उसी वसन्त की मधुर वेला में सुभानुकुमार वन-क्रीड़ा के लिए निकल पड़ा ! उद्यान में अनेक नारियाँ मूले में बैठ कर कामोद्दीपक गीत गा रही थीं। उनके सुरीले राग में मनोहर गीतों को सुन कर वह उन्मत्त हो गया एवं काम-पीड़ा से अचेत हो कर वह भूमि पर गिर पड़ा। अपने स्वामी को ऐसी अवस्था में देख कर उसके सेवकगण उठा कर उसे महल में ले गये। सेवकों के वर्णन से सत्यभामा ने समस्त घटना समझ ली। उसे निश्चय हो गया कि पुत्र अब विवाह के योग्य[हो गया है। उसने अपने पार्षदों को बुलवा कर कहा कि तुम लोग छद्म रूप से उपयुक्त वधू के अन्वेषण हेतु जाओ, पर यह प्रसंग किसी पर भी प्रकट न हो / सत्यभामा की आज्ञा पाकर उसके पार्षदगण वधू के सन्धान हेतु चतुर्दिक गये एवं कार्य सिद्ध कर शीघ्र ही लौट आये। इसके पश्चात् नगर में यह चर्चा प्रसारित कर दी गयी कि सुभानुकुमार का विवाह निश्चित् हो गया है एवं महारानी के पार्षद चयन कर एक योग्य वधू ले आये हैं। सत्यभामा ने उद्यान में प्राप्त हुई राजकन्या (शंभुकुमार मायावी वेश में) को गुप्त रूप से एक अन्य स्थान पर पहुँचा दिया एवं स्वयं हथिनी पर आरूढ़ हो कर उसे लेने के लिए गयी। एक विराट जुलूस के साथ वह कुमारी महल में लाई गयी एवं मांगलिक अनुष्ठान सम्पन्न होने लगे। लग्न का समय हो चुका था, फलतः सुभानुकुमार पाणिग्रहण के लिए आ पहुँचा। किन्तु ज्यों ही वह कन्या के निकट पहुँचा कि कन्या ने एक व्याघ्र का रूप धारण कर लिया एवं उस पर ऐसा झपटा कि वह मूञ्छित होकर भमि पर गिर पड़ा। विवाह में योग देनेवाले समस्त यदुवंशी भयभीत हो उठे। उपस्थित नारी समूह तो पलायन ही कर गया। इसके पश्चात् वह व्याघ्र शंभुकुमार के रूप में परिणत हो गया एवं मुस्कराते हुए महाराज श्रीकृष्ण की सभा में जा पहुँचा / उसे देख कर श्रीकृष्ण को महान् आश्चर्य हुआ। तत्पश्चात् प्रद्युम्न की लीला ज्ञात होने पर उन्होंने शंभुकुमार को आसन देकर बैठाया। इस काण्ड से सत्यभामा का समस्त दर्प विनष्ट हो गया। उसने दुःखी होकर अपने पिता के पास सन्देश भेजा। उसके विद्याधर पिता ने एक शतक सुन्दरी कन्याएँ भेज दी, जिनके साथ सुभानुकुमार का विवाह हुआ। वह अपनी पत्नियों के साथ क्रीड़ा में रत रहने लगा। ____ शम्भुकुमार भी युवावस्था में पहुंच गया था। प्रद्युम्न ने उसके लिए अपने मामा से कन्याओं की याचना | की, पर उसने अस्वीकार कर दिया। इससे प्रद्युम्न अपने मामा रूप्यकुमार पर क्रोधित हुआ। दोनों भ्राता Jun Gun Aancha Trust 271
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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