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________________ PP.AC.Gunvanasus MS. | प्रलयकाल का तरह प्रचण्ड वे उभय सेनार्य परस्पर युद्ध रत थीं। रथी, अश्वारोही, पदातिक सब-के-सब प्राणांतक युद्ध करने लगे। उस रणस्थली में बड़ा विकट संग्राम हुआ। यद्यपि संग्राम निष्प्रयोजन था, फिर भी बाणों के प्रहार से आहत योद्धा छिन्न-भिन्न हो भलंठित होने लगे। गजराजों ने भी अनेक सुभटों को धराशायी कर दिया। वे विशालकाय गजराज अपने रणकौशल से भूमि को प्रकम्पित करने लगे। समस्त रणभूमि लोहित हो उठी। रक्त की धार में अनेक आहत वीर मानो प्रवाहित होने लगे। अनेक शूरवीरों को मृत्यु की शरण लेनी पड़ी। वस्तुतः स्वामी के कार्य में तत्पर व्यक्ति निस्सार देह को ममता नहीं करते। इस महासंग्राम में प्रद्युम्न की मायावी सेना नष्ट होने लगी थी। किन्तु तत्काल ही कुमार के बलवान वीरों ने यादवों की सेना पर प्रचण्ड प्रत्याक्रमण किया। फलतः नारायण श्रीकृष्ण की सेना पलायन करने लगी। तब बलदेव एवं पाण्डवादि महावीरों ने मनोबल विहीन सेना को धैर्य बंधाया एवं स्वयं प्रद्युम्न की सेना को विध्वस्त करने लगे। किन्तु उस समय भी कुमार ने अपना चातुर्थ प्रदर्शित किया। उसने भी बलभद्र, पाण्डवादि के मायामय प्रतिरूपी शूरवीरों की रचना कर दो। एक ही नाम, एक ही रङ्ग-रूप, एक ही सामर्थ्य के वीर परस्पर लड़ने लगे। ___संग्राम की भीषणता से मानो पृथ्वी एवं व्योम दोनों ही काँप उठे। सुभटों के बाणों से खण्डित राजाओं के छत्र व्योम में नृत्य करते हुए ऐसे प्रतीत होते थे, मानो चन्द्रबिम्ब संग्राम-यज्ञ देखने आये हों। सुभट प्रतिस्पर्धी को ललकारते हुए कह रहे थे- 'तू अब इतना भयभीत हो रहा है, तब युद्ध क्या करेगा ? यह तो जानते ही हो कि युद्ध में मरण से स्वर्ग-मोक्ष नहीं मिलते हैं / इसलिये अपनी चन्द्रमुखी भार्या के दर्शन करने हेतु शीघ्र ही यहाँ से पलायन करो।' इस तरह परस्पर वाद-विवाद करते हुए मायावी एवं वास्तविक मित्र राजाओं ने तुमुल संग्राम किया। योद्धाओं के रुण्ड-मुण्ड से भूतल श्मशान तुल्य हो गया। पर्वताकार गजराजों एवं रथों के धराशायी होने से पथ अवरुद्ध हो गये। अन्य जन बड़ी कठिनता से ही वहाँ प्रवेश कर सकते थे। आभूषणों से अलंकृत एवं आनन्द से नृत्य करते हुए व्यन्तरों से उस रणभूमि का दृश्य अति भयङ्कर एवं | रौद्र प्रतीत होने लगा / कालान्तर में इस अत्यन्त दर्द्धर यद्ध का परिणाम यह हआ कि प्रद्यम की मार पाण्डव व तथा बलदेव समेत समग्र वीर निहत हुए। नारायण श्रीकृष्ण ने जब अपनी सेना को यह दुर्दशा देखी, तब वे अत्यन्त क्रोधित होकर रण हेतु सन्मुख आए। उत्तेजित होकर आते हुए श्रीकृष्ण को देख कर प्रद्युम्न भी Jun Gun Aanha Trust MAIIMILA
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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