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________________ रति एवं कामदेव का शुभागमन देखने के लिए नगर की कुलवधुएं अपने-अपने घर से बाहर निकल आयों। किसी आश्चर्यजनक कौतुक देखने के लिए नारियों में मातुरता के भाव दृष्टिगत हो रहे थे। कामदेव के आकर्षण से अनेक स्त्रियाँ अपना समस्त गृह कार्य छोड़ कर परस्पर कलह करने लगी। राक ने दूसरी PP Ac Bunun MS कहा-'हे सखी! जिसने कुमार की अनुपम रूप-शशि को नहीं देखा, उसका जीवन निरर्थक है।' तीसरी ने कहा- 'वह माता धन्य है, जिसने कुमार जैसे रत्न को जन्म दिया।' उसने यह भी कहा-'वह रति धन्य है, जो कामदेव के अङ्क में सुशोभित होती होगी।' इस प्रकार नगर को समस्त नारियाँ उस समय कामदेव एवं रति की चर्चा में ही संलग्न थीं। उनमें से अनेक तो अपनी सुध-बुध भी विस्मृत कर चुकी थीं। उनके केश बिखर रहे थे, आतुरतावश उनमें योग्य-अयोग्य का विचार नहीं रह गया था। सत्य है, जब साक्षात् मदन का दर्शन हो जाय, तो तन-मन की सुध-बुध कहाँ रहती है ? काम का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव किसी-न-किसी रूप में समस्त नारियों पर पड़ा। एक विराट उत्सव के साथ कुमार प्रद्युम्न राजमहल में आ पहुँचा। उसने पिता कालसंवर को भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। पिता ने पुत्र का आलिंगन किया,कपोल एवं मस्तक को स्नेह से चूमा। शारीरिक कुशलता पूछने पर कुमार ने निवेदन किया- 'हे पिताश्री! आप के चरण-कमलों को कृपा से मैं सदैव प्रसन्न रहता हूँ।' इसके अनन्तर वह माता के महल में जा पहुँचा। उसने जननी का चरण स्पर्श किया। कनकमाला ने भी सोलह लाभों को प्राप्त किये हुए पुत्र को आशीर्वाद दिया। उस समय कुमार की सुन्दरता देखने योग्य थी। अपने ऐश्वर्य एवं यश से त्रिभुवन को अभिभूत करनेवाला प्रद्युम्न सम्पूर्ण गुणों का आकार (कोष ) था। सुकोमल कपोल, विस्तृत केश राशि का आकर्षक विन्यास, सुन्दर नेत्र, शङ्ख के सदृश कण्ठ, चन्द्रमा के | सदृश सौम्य मुख, सुमेरु की माँति वक्षस्थल, सिंह के सदृश कटि प्रदेश (कमर), हस्ती के सदृश मतवाली गति (चाल) एवं कुन्दन (तपाये हुए स्वर्ण) के सदृश वर्णवाले प्रद्युम्न को अवलोक कर अब कनकमाला भी काम से बिद्ध हो गयी। उसका मुख ऐसा मुरझा गया, जैसे तुषार (पाला ) लगा हुमा कमल हो। विरह में उसकी देह सन्तप्त होने लगी। उसने विचार किया- मेरा यह जीवन, मेरा रूप, मेरी कान्ति, मेरे गुण - Jun Gun Aaradhak 318
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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