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________________ 116 PP Ad Guntas MS न हुई। उसने वन में जाकर वहाँ के महाबल नामक दैत्य को परास्त किया। उस दैत्य ने मदन, मोहन, तापन, शोषण एवं उन्मादन नामक पाँच विख्यात पुष्प-बाण एवं एक पुष्प-धनुष दिया / कुमार अब यथार्थ में मदन (कामदेव) हो गया। इस प्रकार अमूल्य निधियाँ प्राप्त कर सकुशल लौटते कुमार को देख कर अन्य विद्याधरराजकुमारों का चित्त अत्यधिक सन्तप्त हुआ। वे दुष्ट छल-कपट की बातें कर उसे सर्प-सर्पिणी-भीमा नाम की भयावह गुफा में ले गये, लेकिन पुण्ययोग से वहाँ भी कुमार को सफलता मिली। वहाँ से पुष्पमय छत्र एवं पुष्पमयो सन्दर शैय्या ले कर वह लौटा। गुफा के स्वामी देव ने कुमार का यथोचित सत्कार किया। पण्य के प्रभाव से मनुष्य को निरन्तर सख-लाम होना स्वाभाविक हो है। अव की बार कुमार के लौटने पर उन दष्ट राजकुमारों ने उसका वध कर डालने का विचार किया। कुटिल वज्रदंष्ट ने कहा-'अभी अन्य दो उपाय शेष हैं, जिनमें फंस कर कुमार की मृत्यु हो जाने की सम्भावना है। अतएव वर्तमान में उस पर आक्रमण करना उचित नहीं है।' अभी इन लोगों में वार्तालाप चल ही रहा था कि कुमार भी आ गया। पूर्व की माँति अनेक कष्ट उठा कर वे सब विपुल नामक वन में आ गये। वहाँ शस्यों (फल-पुष्प) से सुशोभित जयन्त नामक एक विशाल पर्वत था। उस की ओर इङ्गित कर दुष्ट राजकुमारों ने कहा-'इस पर्वत के आरोही को अमूल्य निधियाँ प्राप्त होती हैं।' कुमार निःशङ्क होकर चढ़ गया। पर्वत के निम्नमाग में जल से परिपूर्ण नदियाँ वेग से प्रवाहमान थीं। तट पर कण्ठ-तमालादि वृक्ष शोभा पा रहे थे। तमाल वृक्ष के तले शिला पर आसन लगाये हुए एक कामिनी बैठी थी। उसे देख कर यही विश्वास होता था कि वह ध्यानमग्न है। वह स्फटिक की माला से जप करती जाती थी। उसकी सुन्दरता का तो कहना ही क्या था? उसके मुख-पद्म से निकलती हुई सुगन्धि के कारण भौंरों के मुण्ड मँडरा रहे थे। उसके उन्नत उरोजों के भार से उसको कोमल देहयष्टि अवनत हो रही थी गज-सी चाल, वीणा के सदृश स्वर, कमल तुल्य चञ्चल नेत्र देख कर कुमार को ऐसा मान हुआ मानो वह त्रिलोक की समस्त सुन्दरियों को परास्त कर भाई हो। उस सर्वाङ्ग सुन्दरो को देख कर कुमार चकित हुमा स्वं विचार करने लगा। क्या यह सूर्य की पत्नी है अथवा चन्द्रमा की कामिनी अथवा इन्द्राणी, रति आदि में से तो कोई नहीं है ? ऐसा मनमोहक रूप जिसमें भव्यता एवं लावण्यता कूट-कूट कर भरी गयी थी, देख कर कुमार (मदन) काम से विह्वल हो गया। वह पञ्च-शरों से घायल होकर व्यग्र-चित्त हो बैठ गया। किन्तु Jun Gun Aaradhakor 126
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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