________________ PRAGMS || बतलाया कि इस (शूकर-वाराह ) पर्वत पर आरोहण करनेवाला समस्त पृथ्वी का अधिपति होता है। वीर || प्रद्युम्न तत्काल ही पर्वत पर चढ़ गया एवं वहाँ स्थित वराहमुख नामक पराक्रमी देव से संग्राम करने लगा। किन्तु घुण्य बल से ऽद्युम्न ने उसे भी परास्त किया, कारण संसार को समस्त निधियाँ पुण्यात्माओं को बड़ी बड़ी सुगमता से मिल जाती हैं। उस देव ने जयशङ्ख एवं पुष्पमय धनुष देकर प्रद्युम्न की अभ्यर्थना की। . प्रद्युम्न को विजयो देख कर शेष विद्याधर राजपुत्र अत्यधिक क्रोधित हुए। किन्तु वे कर क्या सकते थे। वे पुनः उसको ले कर पद्म नामक महावन की ओर अग्रसर हुए। पूर्व की भांति खड़े होकर वज्रदंष्ट्र ने कहा-'यह वन पृथ्वी पर अत्यन्त विख्यात है। जो निर्भयता के साथ इस महावन में भ्रमण कर लौट आता है, व्ह संसार का अधिपति होता है।' साहसी प्रद्युम्न ने बड़ी त्वरता से वन में प्रवेश किया। भ्रमण करते हुए प्रद्युम्न ने देखा कि एक मनोजव नामक विद्याधर एक वृक्ष के तले बन्दी अवस्था में बँधा है। कुमार ने जिज्ञासा की- 'हे विद्याधर! इस जनशून्य स्थान में तुम्हें किसने बन्दी बनाया है ?' मनोजव ने उत्तर दिया- 'हे नाथ ! मेरे पूर्व-भव के शत्रु बसन्त नामक विद्याधर ने मुझे यहाँ बन्दी बना रखा है। यदि आप अनुग्रह करें, तो मैं मुक्त हो जाऊँगा।' कुमार ने कहा-'हे बन्धु! तुम तनिक भी चिन्ता न करो, मैं अभी तुम्हें बन्धन रहित कर देता हूँ।' मनोजव को मुक्त कर देने के पश्चात् उसका शत्रु बसन्त पुनः उसके पीछे आया एवं S ONG Jun Gun A के ही भागा जा रहा था, इसलिये मैं इसे बन्दी बना लाया हूँ। इतना कह कर उस विद्याधर ने कुमार को सन्तुष्ट करने के उद्देश्य से एक बहुमूल्य हार एवं इन्द्रजाल नाम की एक विद्या प्रदत्त की। तत्पश्चात् कुमार के उद्योग से दोनों का विरोध मिट गया एवं उनमें मित्रता हो गयी। उन्होंने प्रसन्न होकर कुमार को एक नवयौवना सर्वगुणसम्पन्न कन्या समर्पित की। आचार्य का कहना है कि पुण्योदय से विश्व की समस्त विभूतियाँ अनायास ही मिल सकती हैं। जब कुमार उक्त स्थान से भी विजय श्री का वरण कर के लौटा, तो शेष राजकुमार शत्रुतावश अत्यधिक क्रुद्ध हो उठे। वे इस बार उसको कालवन नामक स्थान पर ले गये / वज्रदंष्ट्र ने पूर्व की भाँति कहा-'इस वन में प्रवेश करनेवाला भी उत्तम वैभव को प्राप्त करता है।' कुमार को इस वन में प्रवेश में भी कोई कठिनाई 111 Trust