________________ PPA C 113 MS में कूद पड़ा। वहाँ के रक्षक-दैत्य एवं कामदेव (कुमार) में घोर युद्ध हुआ। अन्त में दैत्य पराजित हुआ एवं उसने बड़ी नम्रता से कहा-'आप मुझ पर प्रसन्न हों। कृपा कर आप अग्नि द्वारा धौत एवं सुवर्ण केतु से बने हुए दो वस्त्र ग्रहण करें।' कुमार ने वैसा ही किया। वे दिव्य वस्त्र लेकर वह (शत्रु) भ्राताओं के समीप आ गया ! वज्रदंष्ट्र अपने उद्देश्य की येन-केन-प्रकारेण पूर्ति करना चाहता था। वह कुमार को एक भेषजाकार पर्वत पर | ले गया। पर्वत के समीप खड़े होकर उसने कहा-'जो वीर इस पर्वत पर चढ़ सकेगा, उसे इच्छा के अनुसार। फल प्राप्त होंगे।' कुमार अपने भ्राताओं का अभिवादन कर पर्वत पर जा पहुँचा। जब वह शिखर के मध्य में पहुँचा, तो पर्वत के दोनों उच्च शिखर झुक कर परस्पर मिलने लगे। यदि वे मिल जाते, तो कुमार के चूर-चूर हो जाने की आशङ्का थी। कुमार समझ गया कि यह अवश्य ही किसो देव की माया है। उसने दोनों शिखरों को पकड़ कर बलपूर्वक धक्का दिया। तब पर्वत के शिखर से एक देव प्रकट हुआ। वह कुमार से संग्राम करने लगा। अन्त में देव को अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी। उसने अत्यन्त विनम्रतापूर्वक कुमार से कहा-'हे नाथ ! मुझे क्षमा करें। मैं आपका दास हूँ।' उसने कुमार को दो रत्नकुण्डल उपहार में दिये। कुमार को सकुशल लौटते हुए देख कर वज्रदंष्ट्र के भ्राताओं ने क्रोधित हो कर कहा-'अब हम स्वयं इस दुष्ट का वध करेंगे। यह जहाँ कहीं जाता है, वहीं से लाभ प्राप्त कर लौटता है।' लेकिन वज्रदंष्ट्र ने समझाते हए कहा-'हे भ्रातागण! निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी-न-किसी जगह वह फंसेगा एवं द्वन्द युद्ध में निहत हो जायेगा। अभी तो उसकी मृत्यु के हेतु सैकड़ों उपाय मेरे पास हैं। अभी वज्रदंष्ट एवं उसके अनुजों में यह चर्चा हो हो रही थी कि कुमार प्रद्युम्न आ गया। वे सब उसे छलपूर्वक विजयाद्ध-पर्वत के एक वन प्रदेश में ले गये। उस घने वन में नाम का एक विशाल वृक्ष था। वृक्ष के समीप खड़े होकर वज्रदंष्ट्र ने कहा-'इस माम के वक्ष में एक अद्भुत गुण है; वह यह कि जो इसके फल का भक्षण करेगा, उसकी युवावस्था सदा विद्यमान रहेगी। वह जरा-मृत्यु से वञ्चित होकर सदा सौभाग्यशाली बना रहेगा।' कुमार ने कहा-'ज्येष्ठ श्री। तब क्यों न मैं ही इस अमृत फल का आस्वादन करूं?' वज्रदंष्ट्र को आज्ञा पा कर वह निःशङ्क वृक्ष पर चढ़ गया ससकी डालियाँभकभकोरने लगा। उस समय वृक्ष पर एक विराट वानर प्रकट हआ। क्रोध से उसके नेत्र Jun Guna 113 Trust 15