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________________ % BE PP ACCUMS हताम हो गये। पर शीघ्र ही उन मायात्रियों ने कुमार के आने पर कृत्रिम प्रसन्नता प्रकट की एवं उसे नाग नाम की एक अन्य गुफा की ओर ले गये। दूर खड़े हो कर वज्रदंष्ट्र ने कहा- 'इस गुफा में प्रवेश करनेवाला भी एलोवांछित वस्तुओं का स्वामी बनेगा। nga मैं कभी जाकर लौटता हूँ।' किन्तु साहसी कुमार की 212 बार भी जाने के लिए उद्यत हो गया एवं निर्भय होकर उसने गुफा में प्रवेश किया। वहाँ नागराज को परास्त कर उसे अपने कार में कर लिशा कुमार के अद्भुत पराक्रम से प्रसन्न हो कर नागराज ने प्रणाम किया एवं दक्षिणा में नाग-शैय्या, वीसा, सिंहासन, वस्त्र, अभिषण एवं गृह, कारिका. संथा, सैन्य, रक्षिका--ये चार विद्यार्थ भी दी: कुमार नागराज को अपना शर्ती बना कर अपने भ्राताओं के सानिध्य में लौट आया। वे माशावी (कपटी) ब की बार भो प्रसन्नतापूर्वक मिले। इसके पश्चात् अज्रदंष्ट्र सपने माताकों के साथ कुमार को एक बावड़ी के तट पर ले जाया / वहाँ जाकर उसने कहा-'जो व्यक्ति निःसङ्कोच इस वापिका में स्नान करता है, उसे समस्त निधियाँ प्राप्त होती हैं एवं वह त्रिलोक का स्वामी होता है।' अग्रज यह की उक्ति सुन कर कुमार उसी समय वापिका में कूद पड़ा। यह गजेन्द्र की भाँति लकिलोल्ल कसी लगा। पालथे बालोडित होने से वापिका-रक्षक देव अत्यन्त क्रोधित हुना। उसने बाहर निकल कर कहा-'अरे नाधम ! तू ने सरेन्द्र की निर्मल वापिका क्यों पवित्र को ? वापिका के निर्मल कमलों को बड़ा आघात पहुँचा है। इसलिये मैं तुझे यमपुरी पठाता हूँ।' देव के निंद्य वचन सुन कर कुमार ने क्रोध से सन्तप्त होकर कहा-'मरे असुराधम ! व्यर्थ का प्रलाप क्यों करता है ? यदि तुझ में शक्ति है, तो मुझ से युद्ध के लिए प्रस्तुत हो।' देव भी तत्काल सन्नद्ध हो गया। दोनों में प्रचण्ड युद्ध हुआ एवं अन्त में कुमार विजयी हुला। कुमार के राक्रम से देव कातर हो गया। कुमार के चरणों में सिर कार उसने कहा-'हे महाराज ! मैं आप का दास हूँ।' देव ने कुमार की पूजा कर उन्हें मकर की राक बजा प्रदान की। उसी समय से प्रद्युम्न का एक नाम मकरकेतु हुआ। वापिका से सफलता प्राप्त कर जब कुमार बाहर आये, तो उनके दुष्ट भ्राताओं को बड़ी निराशा हुई। वे एक दहकते हुए कुण्ड को दिखलाने के लिए। उसे लै गरी / कुण्ड के समीप जी पार व उदंष्ट्र ने कहा- मैं ने पृद्ध विद्याधरों से सुना है कि इस मुण्ड में प्रवेश करनेवाला मनोवांछित फल प्राप्त करने के साथ-साथ लोक-प्रसिद्ध नरेश भी होगा।' कुमार तत्काल कुण्ड || Jun Gun Aardak Tres 22
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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