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________________ P.P.Ad Gurransuri MS से लाभ ही क्या ? नहीं देखते हो, जिसके कुलगात्र का कोई निश्चय नहीं, उस दुष्टात्मा ने तुम्हारा राज्य (युवराज पद) हस्तगत कर लिया है। इससे उत्तम था कि सब वीरगति को प्राप्त हो गये होते। अतएव तुम्हें | यथासम्भव शीघ्र ही उसका वध कर डालना चाहिये। उसके जीवन काल में तुम सब कुछ भी अर्जित न कर || 208 पाओगे।' उन कुटिल बुद्धिवाले राजपुत्रों ने भी निश्चय कर लिया कि चाहे जो हो प्रद्युम्न का वध करना है। उन्होंने अपनी माताओं से कहा-'जैसी आप की आज्ञा / हम सब उसके प्राण-हरण का उद्योग करेंगे। वे | सब-के-सब आकर कामदेव ( प्रद्युम्न ) से मिले। उन मायावियों ने प्रद्युम्न से यथेष्ट प्रीत-स्नेह बढ़ाया एवं आहारविहार-शयन आदि में घात का अवसर ढूँढने लगे। केवल इतना ही नहीं, प्रद्युम्न के आहार-पान की वस्तुओं में विष मिलाने लगे। किन्तु दैवयोग से वह विष भी अमृत तुल्य आचरण करने लगा। यह तो निश्चित ही है कि पूर्व पुण्य से अनिष्ट पदार्थ भी सुखदायक हो जाते हैं। ___जब किसी प्रकार से भी दुष्टों का दाँव न चल सका, तो उन्होंने दूसरा मार्ग निश्चित किया। इस हेतु वे अपने ज्येष्ठ भ्राता वज्रदंष्ट्र को अगुआ बना कर कुमार प्रद्युम्न को विजयार्द्ध पर्वत पर ले गये। वहाँ श्रीजिनेन्द्र भगवान का रत्न-सुवर्णमय विशाल मन्दिर था। उसके अन्दर जा कर सब ने जिन-वन्दना को। जब वे मन्दिर से बाहर निकले, तो उन्होंने गिरि शिखर पर गोपुर देखा / महाधूर्त वज्रदंष्ट्र ने कहा-'हे भ्रातागण ! आज मैं तुम्हें एक लाभप्रद विषय बतलाता हूँ। विद्याधरों का कहना है कि जो व्यक्ति इस गोपुर में प्रविष्ट होगा, उसे मनोवांछित फल मिलेगा। इसलिये तुम लोग यहीं रहो, मैं लाभ प्राप्त कर लौटता हूँ।' __उस समय पराक्रमी प्रद्युम्न बोल उठा-'पूज्य भ्राता! आप मुझे आज्ञा दीजिये मैं हो गोपुर में प्रविष्ट होकर इस लाभ को प्राप्त कर ल।' तब कुटिल वज्रदंष्ट्र ने तत्काल कह दिया-'एवमस्तु।' निशङ्क हो कर प्रद्युम्न गोपुर की ओर अग्रसर हुआ। क्रमशः अपना वेग बढ़ाते हुए उसने प्रचण्ड शक्ति से गोपुर के अवरुद्ध द्वारों को उन्मुक्त करने का प्रयास किया। कोलाहल सुन कर भुजङ्ग नामक रक्षक देव जाग्रत हो उठा। उसने नेत्र रहिमकर प्रद्युम्न से जिज्ञासा की-२ दुष्ट ! तू ने मेरे पवित्र स्थान को अपवित्र कर डाला ? क्या तुझे ज्ञानी कि जो गेरे निवास में अधिकार प्रवेश करता है, उसे मैं तत्काल मृत्यु-दण्ड प्रदान करता हूँ? क्या तेरा काल आ गया है या किसी ने तुझे बहका दिया है ?' कुमार प्रद्युम्न ने बड़ी धोरता से उत्तर Jun Gun Aaradhak Tres 208
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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