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________________ P.P.AC Gran MS देखने की अभिलाषा से इस प्रकार नारद रनिवास में आ पहुँचे। ___रानी कनकमाला ने नारद मुनि का बड़ा सम्मान किया। मुनि ने कहा- 'हे रानी ! मैं ने सुना है कि तेरे गूढ़ गर्भ से पुत्र की उत्पत्ति हुई है, उसे दिखला तो सही।' रानी कनकमाला ने पुत्र को लाकर मुनि के ||206 चरणों में रख दिया। मुनि ने आशीर्वाद देते हुए कहा- 'हे पुत्र ! चिरओवी भव। चिरकाल तक सुखी रह।।. तेरे माता-पिता के मनोरथ सिद्ध हों।' उन्होंने रानी को सम्बोधित करते हुए कहा- 'हे रानी! तू बड़ी भाग्यशालिनी है। मेरी अभिलाषा है कि यह पुत्र चिरकाल तक जीवित रहे।' नारद ने श्रीकृष्ण-पुत्र को सर्वाङ्ग निहारा एवं फिर वे अन्तःपुर से निकले एवं तत्काल रुक्मिणी को सूचित करने के उद्दश्य त्वरित गति से प्रस्थान किया। द्वारिका पहुँच कर नारद सर्वप्रथम नारायण श्रीकृष्ण से मिले, इसके पश्चात् रुक्मिणी से। उन्होंने श्री सीमन्धर स्वामी द्वारा वर्णित प्रद्युम्न विषयक सम्पूर्ण वृत्तान्त रुक्मिणी से कह सुनाया, अर्थात् उसका स्थान, पूर्व-भव की वार्ता, वय, रूप, लक्षण, आगमन काल, आदि कह सुनाये। साथ ही यह भी कहा कि वह सोलह लाभ एवं दो विद्याओं के साथ द्वारिका में आयेगा। समस्त वृत्तान्त सुन कर रुक्मिणी के आनन्द का पारावार न रहा। इस प्रकार नारद सब को सन्तोष प्रदान कर अपने स्थान को लौट गये। ममता की मूत्ति रुक्मिणी अपने प्रिय पुत्र के आगमन की आशा मन में लगाये सुख से रहने लगी। भाचार्य का कहना है1 'इसी प्रकार विषयासक्त संसारी जीव निरन्तर नाना योनियों में परिभ्रमण करते हैं। अतएव भव्य जीवों को चाहिये कि स्वर्ग-मोक्ष के प्रदायक तथा जिनेश्वर द्वारा प्रणीत सोम एवं चन्द्रमा के सदृश निर्मल धर्म को सदाकाल धारण करें।' नवम सर्ग कुमार प्रद्युम्न के बाल्य-जोवन पर पूर्व-पुण्य का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसकी सुन्दरता अपूर्व हो | | गथी। समग्र प्राणी उसकी ओर आकर्षित हो जाते थे। वह चन्द्रकला की भाँति दिन-प्रतिदिन बुद्धिमान होने - लगा। साथ-ही-साथ राजा कालसम्वर के धन-धान्य (वैभव) की वृद्धि होने लगी। राजा एवं रानी दोनों | / प्रद्युम्न को प्राणों से भी अधिक प्यार करने लगे। सत्य है. ऐसा सौभाग्य पर्व-भव के पण्य से ही प्राप्त होता है।। Jun Gun Aardak Trus
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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