________________ PPAC Guras MS इधर-उधर घूमने लगा। राजा हेमरथ की अवस्था दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगी। उसे सिवाय हा प्रिये! हा प्रिये !' कहने कि अतिरिक्त कुछ नहीं सूझता था। उस मन्दबुद्धि के मुख की कान्ति जाती रही, देहयष्टि मलीन एवं केश रुक्ष हो गये। इस प्रकार मोहवश उन्मत्त (पागल) को अवस्था में राजा हेमरथ दैवयोग से अयोध्या में आ पहुँचा। वह मार्ग में जाती हुई नारियों को देख कर उनके पीछे लग जाता। उनसे कहने लगता–'चन्द्रप्रभा ठहरो! मेरा कथन तो सुन लो।' उसे उन्मत्त समझ कर कुछ नारियाँ कंकड़ एवं पत्थर मारने लगी, जब कि कुछ नारियाँ देख कर ही पलायन कर जाती थी अर्थात् चारों ओर से राजा हेमरथ पर दुत्कारें पड़ती थीं। वह वोथि (गली) एवं मार्गों ( सड़कों) पर भटकने लगा। - एक दिन की घटना है कि रानी चन्द्रप्रभा गवाक्ष से निहार रही थी। उसको वृद्धा दासी ने राजा हेमरथ को महल की ओर दौड़ते एवं हाय-हाय करते हुए देखा। वह पहिचान गयी कि ये महाराज हेमरथ हैं। अपने पूर्व स्वामी महाराज हेमरथ की दुर्दशा देख कर उसे बड़ी करुणा भायी। वह दुःखित हो कर रुदन करते लगी। दासी को रुदन करते हुए देख कर चन्द्रप्रभा ने पूछा- 'हे धाय माँ! तेरे रुदन से मैं भी सन्तप्त हो रही हूँ। तेरे इस रुदन का कारण क्या है ? क्या किसी ने तेरा अपमान किया है ?' दासी ने कहा'हे पुत्री! इस विलाप का कोई कारण नहीं। अनायास ही अश्रु प्रवाहित हो आये हैं।' जब रानी ने बारम्बार आग्रह किया, तो दासी कहने लगी-'हे पुत्री ! तुम तो सुख में निमग्न होकर अपने पूर्व पति को विस्मृत कर बैठी ही। किन्तु तेरे प्राणप्रिय राजा हेमरथ को यह अवस्था है कि वह उन्मत्त हो गया है। वह नीच जाति के बालकों के सङ्ग यत्र-तत्र मारा-मारा फिरता है। उसकी दुर्दशा देख कर मुझे घोर सन्ताप हुआ है। मैं इसीलिये विलाप करने लगी थी। अन्य कोई कारण नहीं है।' दासी के ऐसे वचन सुन कर रानी चन्द्रप्रभा को प्रचण्ड क्रोध जाया। उसने कहा-'हे धाय माँ! तू ने यह उचित नहीं कहा। जिन रहस्यों से मुझे दुःख हो, उन्हें प्रकट करना उचित नहीं। तू विगत जीवन का स्मरण करा कर मुझे क्यों दुःखी करती है? तू ने अपना दुग्धपान करा कर मेरी जीवन-रक्षा की थी, इसलिये तू माता तुल्य है। यदि ऐसा न होता, तो मैं तुझे कठोर दण्ड देती। जिसका मुख स्वयं पूर्ण चंद्र के सदृश है, जिसकी आकृति मनोज्ञ एवं नेत्र चञ्चल हैं, जिसकी देहयष्टि की रुपरेखा कामदेव को भी परास्त करती है, जिसके अधीन सहस्रों सामन्त राजा हों, ऐसे मेरे Jun on A 301 True