________________ ARROR श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीवलयमयन्तीचरित्रम् Ago) कथं मे मस्तके न्यस्ताविति पङ्केन कोपतः॥ धृती किलेतिनोतुं शक्यतेऽही मुनेऽधुना // 939 / / अन्वय:- हे मुने। कथं मे मस्तके न्यस्तौ इति कोपतः पङ्केन धृतौ अंही अधुना उद्धतुं न शक्यते किल // 939 // विवरणम:- हेमुने। कथं मे मम मस्तके पादौन्यस्तौ निहितौ इति कोपतः कोपात् पङ्केन कर्वमेन धृतौ गृहीतौ अघी चरणौ अधुना उजतु न शक्येते किल // 939 // कर्दम: कुपित इव मम पादौ अगृहाता तेन आई पादौ उजतु न शक्नोमि॥९३९॥ सरलार्थ:- हे मुने। कथं मम मस्तके पादौ न्यस्तौ इति कोपात् इव पडून पृतौ पादौ अधुना उबर्तुम् उत्थापयितुं न शक्यते। कर्दमेन जहीभूतत्वात् / / 939|| તી:- હે મુનિરાજ મારા મસ્તક પર તમોએ પગ કેમ મુક્યા? એવા કાદવના કોપથી જાણે તેમાં મૂકેલા પગ હમણા ઉંચકી ४ानथी.10380 हिन्दी :- "हे मुनिराज! मेरे मस्तक पर आपने पैर क्यों रखा? ऐसा कहकर मानों कोप से ही कीचडने मेरे दोनों पैर पकड़े। अब मैं उनको उठा सकता नहीं।"||९३९॥ :- "हे मुनिराजा माझ्या मस्तकावर तुम्ही पाय का ठेवला? असे म्हणून जण काय रागानेच चिखलाने धरलेले पाव आता उचल् शकत नाही.।।९३९।। English - He asked the priest, as to why he had kept his feet on his head and is not able to lift it up which seems like, as if he cought in a sinking sand and is unable to lift his foot up because of the fiery wrath of the sinking sand. तदद्यात्र महर्षे त्वं किमुड्डीय समागतः॥ किं तपस्तन्त्रमन्त्रोत्थशक्त्या व्योमचरोऽसि वा // 940 // अन्वय:- तद् हे महर्षे! अघ अत्र त्वं किम् उड्डीय समागतः। अथवा तपस्तन्त्रमन्त्रोत्थशक्त्या व्योमचर: असि // 940 // BLUEFFEEEEEEEEEEEEEEELLERS