________________ NOTESeledessessings श्रीजयशेखरसूरिशिरचितं श्रीनलक्षणयन्तीमारिश PANTRANCHISARTANPUSairareena annama श्रद्धालुर्धनदेवोऽपि, तत्र भैम्या सहागमत् / / गुरुवाक्यमिवाली , तद्वचो बहुमानयन् / / 492 // अन्यय :- श्रद्धालुः धनदेव: अपि गुरुवाक्यम् इव अलभ्यं तद्वचः बहुमानयन भैम्या सह तत्र अगमत् // 492 // विवरणम् :- अखा अस्य अस्ति इति श्रद्धालः श्रयायुक्तः धनदेवः सार्थवाह: अपि गुरोः वाक्यं वचनं गुरुवाक्यम् इव न लक्ष्यम् अलङ्घ्यं तस्या: दमयन्त्या: वच: वचनं तवचा बहुमानयन भीमस्य अपत्यं स्त्री भैमीदमयन्ती तथा भैम्यादमयन्त्यासह तत्र अगमत् अगच्छत् // 492 // सरलार्य :- श्रब्दातः धनदेवः सार्थवाह: अपि गुरुवचनम् इव अलप्यं तस्याः दमयन्त्याः वचनं बहुमानयन दमयन्त्या सह तत्र अगमत् // 49 // ગુજરાતી:- પછી શ્રદ્ધાવાળો તે ધનદેવ સાર્થવાહ પણ ગુરુમહારાજના વચનની પેઠે તેણીના વચનનું સન્માન કરતો દમયંતીની સાથેતાં ગયો.i૪૯૨ हिन्दी:- फिर श्रद्धावान् वह धनदेव -सार्थवाह भी गुरुमहाराज के वचन के समान अलंध्य ऐसे उसके वचन का सन्मान करता हुआ दमयन्ती के साथ वहाँ गया। // 492 // 骗骗骗骗骗骗骗骗骗蛋骗骗骗骗骗骗骗 मराठी :- मंतर श्रब्दावान तो धनदेव सार्थवाहपण गुरुमहाराजांच्या वचनाप्रमाणे न ओलांडण्यालावक अशा तिच्या वचनाचा सन्मान करीत दमयंती सोबत तेथे गेला. // 492 / / English - Then this chef Dhandev who had great faith and fealty took Damyanti to him by respecting her " words. Just as one cannot displease a monk, In the same way the chef couldn't go against the words of Damyanti.