SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ReesaazedardPHOTo श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् BARB A सतीव्रता पदापीय, ग्रीष्मश्रीरिव दुस्सहा॥ इति राक्षस्यदृश्याभूदिन्द्रजालकृतेव सा॥४७॥ अन्वय:- सतीव्रता इयं ग्रीष्मश्री: इव पदापि दुस्सहा इति सा राक्षसी इन्द्रजालकृता इव * अदृश्या अभूत् // 47 // विवरणम:- सत्याः व्रतम् श्व व्रतं यस्याः सा सतीव्रता इयं दमयन्ती ग्रीष्मस्य श्री: लक्ष्मी: ग्रीष्मश्री: ग्रीष्मलक्ष्मी: इव पदाचरणेन अपि दःखेन सहयते इति दुस्सहा इति सा राक्षसी इन्द्रस्यजालं इन्द्रजालम् / इन्द्रजालेन कृता इव इन्द्रजालकता इवन दृश्या अदृश्या अभूत् अभवत् // 47 // सरलार्थ :- सतीव्रता इवं वीष्मलक्ष्मी: इव चरणेन अपि दुस्सहा वर्तते इति सा राक्षसी इन्द्रजालकृता इव अश्या अभवत् // 474 / / ગુજરાતી:- સતીવતવાળી આ સ્ત્રીને તો શીબતુની પેઠે અડકવાનું પણ સહન ન થઈ શકે તેવું છે, એમ વિચારીને તે રાક્ષસી જાણે ઇંદ્રજલની બનાવટ હોય તેમ ત્યાંથી અદશ્ય થઈ ગઈ. l474o. हिन्दी:- सतीव्रतवाली इस स्त्री को तो ग्रीष्मऋतु के समान स्पर्श करना भी सहन नही हो सकता ऐसा सोचकर वह राक्षसी मान्गे इंद्रजाल की बनावट न हो। इसप्रकार वहाँ से अदृश्य हो गई // 474 / / मराठी:- सतीव्रत असलेल्या या स्त्रीला वीष्मऋतूप्रमाणे स्पर्श करणेसुद्धा सहन होत नाही, असा विचार करून ती राक्षसी जणु इन्द्रजाल करून उत्पन्न केल्याप्रमाणे अदृश्य झाली. // 474 // English :- The ogress taking this chaste Damyanti as the hot summer season that cannot be touched, dissapeared as though it was an illusion done through witchcraft.
SR No.036462
Book TitleNal Damayanti Charitrayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri, Sarvodaysagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size93 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy