________________ ORGARRAHABArtersdese श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलषप्रयन्तीचरित्रम् MIRRORESTORAGNReventioeng जितु विवरणम् :: हहा | मम कर्माणि मत्कर्माणि मत्कर्मणां दोष: मत्कर्मदोषः तस्मात् मत्कर्मदोषत: वने धरति इति वनचरी जो सजाता इयं दमयन्ती। तद तेन कारणेन अत्र अस्याम् अटव्यां जीवन सन् अपि मृत: मृतवद् अस्मिाहता आशा यस्य सः हताश: निराश: किं करवाणि? किं करवै। मम कर्मणां दोषादेवश्यं दमयन्ती वनवरी इव संजाता। अत: अहंजीवन सत्रापि मृतोऽस्मिा / 296 // सरलार्थ :- हहा। मत्कर्मदोषत: इयं दमयन्ती वनचरी इव जज्ञे। तद् अत्र अहं मृतवद अस्मि परं निराश: अहं किं करवाणिा कि कर // 296 // ગુજરાતી:- અરેરે! મારા કર્મોના દૂષણથી આ બિચારી જંગલમાં રખડતાં પશુસરખી દશાને પ્રાપ્ત થઈ માટે હું તો અહીંછલી છતાં પણ મુઆ સરખો છું, અરે હતાશ થયેલો હું હવે શું કરું? ૨૯દા. हिन्दी:- अरेरे। मेरे कर्म के दोष से यह बेचारी को वन में भटकते हुए पशु के समान दशा प्राप्त हुई। और मैं तो यह जीवित होते हुए भी मृतक के समान हूँ, अरे। निराश हो गया हूँ, मै अब क्या करूं? // 296 / / मराठी :- अरेरे। माझ्या कर्माच्या दोषामुळे या बिचारीला जंगलात भटकणाऱ्या पशुसारखी दशा प्राप्त झाली आहे। त्यामुळे मी दोये जिवंत असूनसुप्दा मेल्यासारखा आहे, परंतु हताश झालेला मी आता काय करू? // 29 // English - Then Nal cursed himself for having done such an immeritable deed as to make this poor and tender Damyanti wonder about in the forest like beasts and also because he being an alive man is just like a dead man who cannot take care of his wife. And thought sadly with a sigh what is he supposed to do now. नाये सत्यप्यनाथेयं, निर्मदाप्युन्मदिष्णुवत् // भूमिसुप्तापि दृष्टयं, ही नलप्रलयाय न / / 297 // अन्वय:- मयि नाथे सति अपि इयम् अनाथा निर्मया अपि उन्मविष्णुवत् भूमिसुप्तापि दृष्टा इयं नलप्रलयाय न॥२९७॥. PreseducestususustaTORRORINAwariseree 266_D ARBARRRRRRRRORISSASURNAMEAPRISISANSAR