________________ करेगा / वह इस चोर की तरह दंडय रहेगा, चोर की दयनीय दशा को देख कर उसे दया आई और वह दानशाला से नीचे उतरकर आरक्षकों से पूछती है, इसने कौन सा अपराध किया है ? तब उन्होंने ऊपर मुजव कहा / चोर ने दमयंती को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और वोला, 'हे भाग्यवती !' आज तेरे दर्शन मुझे इस हालत में हुए हैं, तो मैं मरण शरण कैसे बन पाऊंगा ? तब दमयंती ने कहा मत डरो, तुम मरोगे नहीं मैं तुम्हें छोड़वा लूंगी। तब उसने अपने सतीत्व का स्मरण किया और हथेली का पानी नीचे गिराते हुए कहा 'मैं यदि सती हूँ तो चोर के / हाथ में पड़ी हुई हथकड़ी टूट जाय' उसी समय हथकड़ी के टुकड़े हो गये / हजारों पुरुषों ने अभूतपूर्व इस दृष्य को देखा, और प्रत्यक्ष चमत्कार देखकर शेष जनता भी आई और सती की जय हो, इस प्रकार नारे आकाश में गूंज उठे। ऋतुपर्ण राजा भी आया और सब कुछ प्रत्यक्ष करके विस्मित बना हुआ वह चारों तरफ अपनी आंखों को घुमाता हुआ बोला, वेटी ! मत्स्य गलागल जैसे संसार के इन्सानों को दंड देना तथा सज्जनों का सत्कार करना यह तो राजधर्म है। प्रजा का कर लेकर पृथ्वी को चोर तथा बदमाशों से बचाना पाप नहीं है। इस प्रकार के अपने धर्म से यदि राजा भ्रष्ट बनता है तो वह स्वयं पापी है / यह चोर है जिसप्रकार मेरे घर में चोरी की है यदि दूसरों के यहां भी डाका डाला होता तो भी वह दंडय बनता, इस कारण से मैं यदि इसे सजा न करूँ __ तो चोरों को भी चोरी करने का उत्साह बढ़ेगा और संसार हिंसा चार, मृषावाद, चौर्यवाद, उपरांत मारामारी, काटाकाटी की प्रचुरता से बढ़ जायेगा। . राजा को राजनीति समझाती दमयंती - जवाब में दमयंती ने कहा, राजन् ! आपका कथन सत्य पूर्ण होते हुए भी संसार के संस्थान मात्र में कुछ न कुछ अपवाद का होना अनिवार्य होने से संसार का व्यवहार ठीक रुप से चलता है, क्योंकि जीवों 83 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust