________________ नहीं है / ऐसी परिस्थिति में कर्मों के चक्र में पड़ी हुई व्यक्ति यद्यपि अपने पाप कर्मों को किसी भी प्रकार भुगत लेगी, परंतु साधन संपन्न इन्सान का भी कुछ न कुछ धर्म तो होना चाहिए ? और वह है कर्मो के कारण दुःखी तथा अनाथ बने हुए को शरण देना, रक्षण देना / .), वाईजी ! जिस लड़की को हमने देखा है, उसमें एक भी कुलक्षण नहीं है, तो भी केवल अदृष्ट कर्मों के कारण वह वनवासिनी बनने पाई है, आज चारो दिशाएँ उसके लिए शून्यावकाश जैसी है। आप आप दयालु हैं, इस वास्ते उस लड़की पर दया करें, और शरण दें। दासीओं की बात पर रानीजी को विश्वास आया और बोली, तुम शीघ्रता से जाओ और उस लड़की को अपने यहां सादर ले आना अच्छा है / मेरी चन्द्रवती पुत्री के साथ वह रहेगी, खायेगी, पीयेगी और आनन्दपूर्वक अपना समय बीतायेगी। यह सुनकर दासीएँ प्रसन्न होकर अपने-अपने घड़े मस्तक पर रख लिए और वावडी तरफ चलने लगी / हमेशा की अपेक्षा आज की गति में तेजी है, उत्साह है और दूसरे जीवों की रक्षा करने का आनन्द है / धर्म शास्त्रकारों ने भी कहा है, "परोपकार जैसा धर्म दूसरा एक भी नहीं हैं" मनुष्य जन्म पाकर केवल उदरभरी वनना यह तो पशु से भी खराब जीवन है और मरने के बाद काला मुंह लेकर परमात्मा के घर जाने का लक्षण है, जब कि भूखे को रोटी देना, तरसे को पानी देना, ठंडी में कंपते को वस्त्र देना, रोगी को औषध देना और जीव मात्र को अपने समान समझ सभी के हित में द्रव्यव्यय, बुद्धिव्यय और समय व्यय करना यही जैन धर्म है, मोक्ष मार्ग है तथा अरिहंत परमात्माओं की प्रसन्नता प्राप्त करने का मार्ग है अथवा भविष्य में स्वयं को अरिहंतपद प्राप्त करने का चिन्ह है। दासीएँ वावडी पर पहुँच भी गई और नगर तरफ स्वयं पधारने की इच्छा रखनेवाली लक्ष्मी देवी के सदृश दमयंती को उसी अवस्था में 77 Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.