________________ ने भी कहा है कि, ज्ञानपूर्वक एकासन, आयंबील, उपवास, बेला, तेला, वर्षीतप, आदि तपश्चर्याओं से मोक्ष की प्राप्ति भी सुलभ बनने पाती है तो फिर देवलोक का क्या पूछना ? अनशन के समय मैंने पूर्वकृत हिंसादि की आलोचना तथा पतिक्रमण किया, इसलिए देवयोनि प्राप्त कर सका / मातृस्वरुप दमयंतीजी, तुमने जो अरिहंतों का धर्म सुनाया, अहिंसा की सूक्ष्मता समझाई / संयम तथा तपोधर्म की महिमा बतलाई, इसी कारण मेरा अवतार देवलोक में होने पाया है, अन्यथा मेरी गति क्या होने पाती ? देवयोनि में आने के बाद मैंने अवधिज्ञान का उपयोग रखा और तुम्हारे उपकार का ऋण चुकाने के लिए मैं आया हूँ। धर्म देनेवाली तुम मेरी माता हो और मैं आपका धर्मपुत्र / इन्हीं कारणों से जन्म देनेवाली माता से धर्म देनेवाली माता का महत्व ज्यादा है / इस प्रकार दमयंती की प्रशंसा करने के बाद वह देव तापसों से बोला, 'भो तापसों ! ' मेरे से पूर्व भव में मानसिक पाप जो भी हुआ हो उसे आप क्षमा करें और बड़े पुण्योदय से मिले हुए श्रावकों के व्रतों की पालना करना, ऐसा बोलकर वह तापस गुफा में गया और अपने पूर्वभवीय सर्प के शरीर को बाहर लाकर वृक्ष की डाल पर लटकाया और बोला, 'हे भाग्यवंतों ! ' इन्सान चाहे किसी भी वेष में, धर्म में, शरीर में रहा हो यदि वह क्रोध करेगा, दूसरों का अपमान, निंदा, ईर्ष्या करेगा वह मेरी मुताबिक मरकर लाखों जीवों की हत्या करने वाला सर्प का अव. तार प्राप्त करेगा / देव की यह बात सुनकर पहिले से ही वैराग्य प्राप्त हुए कुलपति के वैराग्य में वृद्धि हुई, क्योंकि थोड़ा सा ही किया हुआ पाप जीवात्मा की दशा बिगाड़ता है। अतः वैराग्य निर्वेद, संवेग, उदासीनता तथा निष्काम जीवन ही श्रेष्ठतम धर्म है। तत्पश्चात् केवली प्रभू से कुलपति ने कहा, 'हे प्रभो !' वैराग्य रुप वृक्ष के फलस्वरुप आप मुझे सर्व विरति धर्म देने की कृपा करे, जिससे मैं जन्म, जरा शोक, संताप, आधि, व्याधि तथा मृत्यु से छुटकारा पा सकूँ / तव केवली परमात्मा ने कहा कि, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust