________________ कपायों का दमन हो, विषय वासना का शमन हो, पापों का निकंदन हो पुण्यपवित्र मार्ग का उदय हो, इन्द्रियरुप घोड़ों का उपशमन हो, मन के सब वैकारिक तूफान बंध हो, वही जैन धर्म है। अहिंसा धर्म है। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु तथा वनस्पति में अनंतानंत जीव हैं, अतः . जैनमुनि इनका स्पर्श भी नहीं करते हैं / स्त्रीमात्र को छुते नहीं हैं, स्नान पानी करते नहीं है, और अपने हाथों से भोजनपानी पकाते नहीं है / क्योंकि इन सब क्रियाओं में हिंसकता रही हुई होने से उनके लिए त्याज्य है / अरिहंत परमात्मा के उपासक गृहस्थाश्रमी को भी कदाच इनका व्यवहार करना पड़े तो विवेकपूर्वक उपयोग करे तथा मर्यादा में रहकर अर्थात् एक लोटे पानी से यदि शरीर शुद्धि हो जाती हो तो, बड़े भर पानी का उपयोग नहीं करते हैं / दमयंती के मुख से अहिंसा-संयम तथा तपोधर्म की व्याख्या सुनकर वसंत सेठ ने जैनधर्म को स्वीकार किया। सर्वथा त्याग करने योग्य तत्व को अभी तक उपादेय रुप से माननेवाले तापसों का भी भ्रम दूर हुआ और उन्होंने भी दयामूलक जैनधर्म स्वीकार किया, क्योंकि दूधपाक का भोजन आकंठ कर लिया हो तो खट्टी छाछ कौन पियेगा। तदन्तर धर्म के रंग में रंगाये हुए सार्थवाह (वसंतसेठ) ने तापसों के आश्रम में शांतिनाथ परमात्मा का भव्यातिभव्य मंदिर बनवाया, तथा पर्णकुटिओं की तोड़कर मकान बनाये / तथा इसप्रकार सेठ तथा तापस धर्मपरायण बनकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं : ... एक दिन मध्य रात्री में पर्वत के ऊपर चमकते हुए सूर्य के सदृश बड़ा भारी प्रकाश तथा देव-असुर तथा विद्याधरों को जयजयकार बोलते उस प्रकाश के पास आते हुए देखा / आश्चर्यचकित दमयंती, वसंतसेठ तथा तापस भी पर्वत के ऊपर चढकर प्रकाश तरफ नजर डाली तो मालूम हुआ " श्री सिंहकेशरी मुनिराज को केवलज्ञान हुआ है" इसलए केवली की महिमा करने हेत देवादि आये हैं / दमयंती के आनंद P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust