________________ अपनी मोक्षार्थ साधिनी पुरुषार्थ शक्ति के बल से स्त्री शरीर का नहीं, अपितु सतित्व की आराधना की थी इसी कारण से भूत, प्रेत व्यंतर, देव, दुर्जन, सांप, बाघ आदि सतीओं के सामने आने की हिम्मत करते नहीं हैं / राक्षस ने शरीर का रुपांतर किया और बिजली के पुंज के समान चमकता हुआ देव दमयंती को नमस्कार कर अपने स्थान पर गया। बारह वर्ष के बाद पति का मिलन होगा, तब तक धैर्य रखना ही अच्छा है, यह समझकर पति के सम्मीलन की मर्यादा पर्यंत लाल वस्त्रों का परिधान, तांबुल का भक्षण आभूषण, शरीरशृंगार तथा रोज के भोजन में दुध, दही, घी, तेल, गुड़ तथा शक्कर का खाना बंद किया क्योंकि नियमबद्ध जीवन में ही परमात्मा का आशीर्वाद साक्षात्कार होना संभावित है / चाहे कितनाही मूल्यवान घोड़ा हो उसे लगाम, हाथी को अंकुश तथा सायकल, मोटर आदि को ब्रेक का होना अत्यंत - जरुरी है अन्यथा दूसरे से टकराना (एक्सीडेंट) अवश्यंभावी है / तो - फिर मानवावतार तो देव दुर्लभ है, अतः नियमबद्ध जीवन ही उसमें चार चांद लगा सकेगा। जिसके जीवन में कुछ तत्व है, उसी पर संकट आयेगे, गुंडे, बदमाश तथा भिखमंगों पर आपत्ति आकर के क्या करेगी? क्योंकि उनके जीवन में एक भी अज्छा तत्व नहीं है / इस प्रकार तीब्र मानसिक वेदना की विद्यमानता होने पर दमयंती ने अपनी आत्मा तथा परमात्मा का विश्वास टिकाये रखा और वन के रास्ते को पार करती हुई, एक पर्वत पर चढ़ने लगी। गुफावासिनी दमयंती = थोड़ी ऊँचाई पर जाने के बाद एक गुफा देखने में आई / जो वर्षा ऋतु को समाप्त करने की मर्यादा तक सर्वथा सुरक्षित थी। दमयंती ने उस गुफा को साफ-सूफ करके रहने लायक कर दी। तथा खेत की पवित्र मिट्टी लाकर इसी चौवीसी के सोलहवें तीर्थकर श्री P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust