________________ पश्चिम दिशा तरफ चार पगे पशुओं की आवाजसे जाना जाता है कि, वहाँ पर गांव होना चाहिए, आप भी कान लगाकर सुनिये / मेरा कहना है कि, अपन' वहीं पर चले जिससे वसंती के सहारे निद्रा भी सुखकर रहेगी। नलने कहा 'हे डरपोक दमयंती !' वहां तापसों का आश्रम है, जिनका दैनिक विधिविधान अज्ञानपूर्वक होने से उनका सम्पर्क भी अपने सम्यकत्व में मालिन्य लानेवाला है / हे कृशोदरि! अति सुंदर दूधपाक में थोड़ी सी खटास पड़ जाने से वह खराव और त्याज्य बनता है, उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि का ज्ञान तथा चारित्र भी मिथ्याविशेषण से विशेषित होने के कारण त्याज्य है / इसलिए तुम यहीं पर निरांत से निद्राधीन बनो, मन में कुछ भी भय मत रखो, मैं तुम्हारा चौकीदार बनकर तुम्हारी रक्षा करने में पूर्ण सावधान हूँ, इतना कहकर अपने वस्त्र का आधा भाग काटके शय्यापर बीछा दिया, मानो। रेशम की गद्दी पर सफेद चादर बिछाई गई है / सो जाने के पहिले दमयंतीने अरिहंत परमात्मा को गाद किया तथा 'नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं, नमो लोप सव्वसा' अर्थात् मैं अरिहंत सिद्ध, आचार्य उपाध्याय तथा मुनिओं को भावपूर्वक वन्दन करती हैं, और उनका शरण स्वीकार करती हूँ। इस प्रकार जैसे गंगानदी के किनारे हँसी विश्राम करती हैं, उसी प्रकार दमयंती निद्राधीन हो गई। मानसिक चिंताओं से भी शरीर की थकान' ज्यादा होने से निद्रा आने में देर नहीं लगती है। - दमयंती का त्याग : 2राजमहलों में रही हुई रेशम की गद्दी पर सोनेवाली दमयंती आज भीलनी की तरह मेरे सहारे जमीन पर सोई हुई है, इस दृश्य को देखकर राजाजी की आँखें पानी से भर आई / मन में सोचा कि. मेरे जुगार का यही फल है. जिससे मेरी धर्मपत्नी की यह दशा कर पाया हूँ न मालूम किसी भव का पाप मुझे आज सता रहा है तो मेरी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust