________________ के मिलने पर रोने का चालु हो जाता है। रानीजी ने पुत्री को गोद में बैठाकर बड़े प्रेम से अपना हाथ उसके शरीर पर फिराया, आश्वासन दिया तथा अपने वस्त्र से दमयंती की आंखे साफ की और बोली, पुत्री! मेरे पुण्य का संभार था कि, तुम मुझे सुरक्षित मिलने पाई हो, इसीसे मालुम होता है कि, अभी तेरा और मेरा पुण्य जागृत' है। फिर तो सस्वागत शहर में प्रवेश किया गया और राजाने तत्काल पुजारियों का बुलाकर आज्ञा दी कि वीत्तराग परमात्माओं के मंदिर में अष्टाह नका महोत्सव' बड़े धूमधाम से मनाया जाय, गरीबों को रोटी दी जाय, मुनि-- यों का स्वागत किया जाय, अनाथ तथा अपंगों को भोजन वस्त्र - दिया जाय / . / माताने दमयंती से कहा, 'पुत्री !' अब मेरे पास सुखपूर्वक रहो हम भी जिस प्रकार से बनेंगे उसीप्रकार यथाशीघ्र नलराजा की तपास करने में प्रमाद करनेवाले नहीं है। फिर हरिमित्रबटु को (राजदूत) खुब प्रसन्न हूए राजाने पांच सौ गांव का दानपत्र तथा सुवर्ण, चांदी आदि दिये और बोले कि, नलराजा की प्राप्ति होने पर तुझे मेरा अर्धाराज्य दूंगा / इस प्रकार दमयंती बड़े सुखसे अपने पिता के घर पर समय बीता रही है, तथापि अरिहंत परमात्माओं को प्रक्षालन, अष्टद्रव्यों से पूजन, आरती, ध्यान, जाप, उपरांत मुनिराज तथा साध्वीजी म. का वैयावच्च दीन-दखियों को दान पण्य आदि सत्कार्यों में दमयंती अप्रमत्त रही है। अपने पति से वियोग होने की बारह वर्ष की अवधि अब पूर्ण होने आ रही है, तो भी अटूट कर्म सत्ता के कारण आन्तरमन में पति के वियोग से संतप्त रहने पर भी दमयंती ने अपने जीव' में से परोपकार, जीवमात्र को सम्यकज्ञान का दान देना चारित्र के भाव उत्पन्न करवाना, नरपशुओं के जीवन में से पशुत्व निकलवाकर उन्हें मानव बनाना आदि कायों में मस्त रही है / अपना जीवन तथा जीवन 100 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust