________________ 1.9. 6 ] हिन्दी अनुवाद मानो उल्लसित हो रहा था / कामदेवके विषम बाणोंसे घायल होकर मानो अनुरक्त परेवोंके स्वरसे * चोख रहा था / अपनी परिखामें भरे हुए जलके द्वारा मानो परिधान धारण किये था। तथा अपने श्वेत प्राकाररूपी चीरको ओढ़े था। वह अपने गृहशिखरोंकी चोटियों द्वारा स्वर्गको छू रहा था और मानो चन्द्रकी अमृतधाराओंको पी रहा था। कुंकुमकी छटाओंसे जान पड़ता था जैसे वह रतिकी रंगभूमि हो, और मानो वहाँके सुख प्रसंगोंको दिखला रहा हो। वहाँ जो मोतियोंको रंगावलियाँ रची गयी थीं उनसे प्रतीत होता था जैसे मानो वह हार पंक्तियोंसे विभूषित हो / वह . अपनी उठी हुई ध्वजाओंसे पचरंगा और चारों वर्गों के लोगोंसे अत्यन्त रमणीक हो रहा था। ऐसे उस राजगृह नगरमें राजा श्रेणिक अपनी रानी चेलनादेवी सहित निवास करता था, जैसे स्वर्ग में सुरेन्द्र पौलोमी नामक इन्द्राणोसे विभूषित होकर निवास करता है // 7 // 8. राजा श्रेणिकका वर्णन तथा तीर्थंकर महावीरका आगमन राजा श्रेणिकने अपने शत्रुओंके प्रतापरूपी अग्निके प्रसारको अपने श्रेष्ठ खड्गरूपी जलसे दमन और शमन किया था। उसने तीन प्रकारको वुद्धिको भली-भांति समझ लिया था और तीनों शक्तियोंका परिपालन किया था। उस राजाने चारों वर्गों को अपने-अपने धर्ममें प्रवृत्त कराया था और चारों आश्रमोंके कर्मों का नियमन किया था। उसने अपने मनमें आरम्भादिक महान् बलशाली पंचांग मन्त्रका अवलोकन किया था। अपनी पांचों इन्द्रियोंका नियमन करते हुए उसने अपने षड्वर्गरूपी रिपुओंका विनाश किया था। उसने अन्यायका नाम भी विच्छिन्न कर दिया था। और दुष्टोंको दण्डका आघात दिखलाया था। उसने सातों व्यसनोंको आकुंचित एवं सातों राज्यांगोंको संचित किया था। ऐसा वह राजा श्रेणिक एक दिन अपनी सभामें सिंहासनपर बैठा था, जैसे सुन्दर पूर्णिमाचन्द्र उदयगिरिपर स्थित हो। उसके मुकुटमे नवीन पुष्प-माला लटक रही थी। खलोंके बलका हरण करनेवाला तथा सज्जनोंका उत्थान करनेवाला, लक्ष्मीको लोलासे संयुक्त जब वह वहाँ बैठा था तभी वहाँ उद्यानपाल आया और उसने अपने मस्तिष्कपर अपनी बाहुरूपी शाखाओंको रख-. कर नरेन्द्र को प्रणाम किया, एवं सूचना दी कि विपुलाचल पर्वतपर लोगोंके पापरूपी ऋणको दूर करनेवाले देवों द्वारा नमित परम जिनेन्द्र सन्मति अर्थात् वर्धमान तीर्थंकर आये हैं / / 8 / / 9. राजा तीर्थंकरकी वन्दनाको जाता है उद्यानपालका वचन सुनकर राजाधिराज श्रेणिक धर्मानुरागसे पुलकित होकर, जिनेन्द्रकी जय बोलेते हए, राजदण्ड तथा राज्यसिंहासन छोड़ उठ खड़ा हुआ, और सात पग आगे बढ़कर उसने आत्मज्ञानके तेजसे युक्त तीर्थंकर देवको सिर नवाकर प्रणाम किया। फिर वोर भगवान्की जय बोलकर बैरियोंको जीतनेवाली आनन्द भेरी बजवायी। क्षणमात्रमें नाना परिजन एकत्र हो गये और उन्होंने पूजाके दिव्य पात्रोंको ग्रहण कर लिया। राजा उत्तम हाथीपर आरूढ़ हुआ, मानो PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust