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________________ -9. 25. 18 ] हिन्दी अनुवाद 173 भी तिरस्कृत कर; दानसे दोन अनाथोंको प्रसन्न कर, आठ सौ वर्ष पृथ्वीका उपभोग कर, पश्चात् अपनी बुद्धिसे ऐसा विचार कर कि धन और यौवन किसके विशुद्ध स्थिर रहते हैं भीषण डाकिनीके समान राजाओंका भक्षण करनेवाली इस मेदिनीको व राज्यके भारको अपने गुणवन्त पुत्र देवकुमारको समर्पित कर नागकुमार भी जाकर अरहंत प्रभुकी शरणमें प्रविष्ट हो गया। वह दृढ़ भुजशाली राजा व्याल और महाव्याल तथा अक्षय और अभय नामक योद्धाओं सहित दिगम्बरी दोक्षा लेकर कषाय और विषादसे रहित हो रहने लगा। उन पाँचों महामुनियोंने पाँचों दुष्ट इन्द्रियोंको जीतकर पंचमगति ( मोक्ष ) का ध्यान करते हुए ( हिंसा, अविरति, कषाय, प्रमाद और योग ) इन पाँचों आस्रवोंका निरोध कर लिया // 24 // 25. नागकुमारका तप और मोक्ष अचैलता, कैशलोंच, नित्य निषद्या ( पद्मासन ) से देहका आकुंचन, स्नान-त्याग, दन्तधावनका त्याग, यथासमय भिक्षा द्वारा नीरस भोजन, भूमिशयन, प्रीति रसका संकोचन, दंशमशकों द्वारा मुंह काटे जानेको दुस्सह वेदना, दुर्जनोंकी गाली-गलौज, ताड़न और बन्धन, वनोंको कंपा देनेवाले प्रचण्ड पवन और बादल, मेघोंकी धारा-प्रवाह वृष्टि, शीतकालमें हिमके बिन्दुओं सहित वायुवेग, हिमपात, शरीरके तेजको दग्ध और अंगके रसोंका शोषण करनेवाली उष्णता, कण्ठमें लिपटकर सर्पो के संचार. सिंहों और व्याघ्रोंको जिह्वाओंकी लपलपाहट, वनवक्षोंके ठंठ समझ कर मयरोंका संघर्षण और शिखाओंका वलन, गुफाओंमें पड़े भीमकाय अजगरोंके साथ . निवास, शूकरोंके कठोर जबड़ोंके संघर्ष, बड़े विशाल गजोंके गण्डस्थलोंका खुजलाना, इस प्रकारके अनेक दुःखोंको सहन कर, वनमें निवास कर तथा भिक्षा भ्रमण कर, शत्रु और मित्रको समान गिनते हए. परिमित आहार करते और निद्राको जीतते हए, भोगोंको भुजंगोंका वेग जैसा स्मरण कर, मनमें जगत्की क्षणभंगुरताको भावना भाते हुए, शुक्ल ध्यानका आरोपण कर, मोहरूपी महान् शत्रु नृपको दूर हटाते हुए, कर्म और कषायरूपी राजाओंका उच्छेद कर आठों कर्मोंकी ग्रन्थिका मोचन कर, यथाख्यात आचारको धारण कर, तीनों गुप्तियोंसे सुरक्षित, अपने साथी उन चारों मुनियों सहित शीघ्र ही अनंग अनंग (अशरीरी) हो गये और अंगके विकारसे रहित होकर मोक्ष गये। वे पुष्प सदृश दाँतोंवाले देवों द्वारा नमित भट्टारक नागकुमार प्रभु हम. पर प्रसन्न हों // 25 // इति नन्ननामांकित महाकवि पुष्पदन्त विरचित नागकुमारचरित नामक सुन्दर महाकाव्यमें श्रीनृपनागकुमारका मोक्षारोहण नामक नवम परिच्छेद समाप्त / संधि // 9 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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