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________________ -9. 18. 23 ] हिन्दी अनुवाद 163 नागदत्त मरकर एक घृणा और विडालभुक्त मनुष्यभवको छोड़कर सौधर्म स्वर्गमें जा पहुंचा जहाँ सैकड़ों उत्तम देवोंके परिवारसहित दुःखकी पोटली कभी एक क्षणके लिए भी पास नहीं आती // 17 // 18. नागदत्तकी दिव्य विभूति नागदत्त मरकर सौधर्म स्वर्ग में पहुंचा। वहाँ भी वह धर्मध्यानमें चित्त लगाये रहा। वह ऐसे देव विमानमें उत्पन्न हुआ जो सूर्यकान्त और चन्द्रकान्त मणियोंसे प्रचुर था। शोभायमान आकृतिका और सुनिश्चल था, जहां मणियों और मोतियोंकी मालाएं लटक रही थीं, जहांकी विविध अट्टालिकाओंपर ध्वजाएं फहरा रही थीं, घण्टाओंका निनाद गूंज रहा था, धवल मंगल गीत गाये जा रहे थे और जो रविकी प्रभासे उज्ज्वल और अत्यन्त शोभायमान था। वहां उस पर देवांगनाएं अपने हाथोंमें सुवर्णके दण्डोंयुक्त श्वेत चमर डुला रही थीं। देवगण जय-जय ध्वनि करते हए नमन कर रहे थे, बन्दीजन गम्भीर वाणीसे स्तुति कर रहे थे तथा मुकुटोंमें जड़े हुए मणियोंकी किरणोंसे स्फुरायमान देव बार-बार जय-जय कर रहे थे। ऐसे स्वर्गमें नागदत्तको पांचपल्यकी आयु प्राप्त हुई और वह वहां नाना सुखोंका उपभोग करने लगा। बहुत भोगोंका उपभोग करते हुए भी वहां उसने अवधिज्ञानसे अपना प्रपंच (पूर्व भवका वृत्तान्त ) जान लिया। तेजस्वी मणिमय मुकुट सिरपर धारण किये हुए, श्रेष्ठ देवोंके योग्य सुन्दर दिव्य वस्त्रधारी, सुवर्णमय कटिसूत्रसे गाढीकमर बाँधे सूर्य सदृश सुन्दर कान्तिसे जगमगाता हुआ, श्वेत तुरुष्क (लोभान) और कर्परसे मिश्रित यक्षकर्दम व कस्तुरीसे सुगन्धित चन्दनसे सर्वांग विलिप्त और सून्दर, सौन्दर्य और भोगमें इन्द्रको भी जीतता हुआ हार-डोर तथा कुण्डलोंसे विभूषित तिलक व बकुलश्रीके पुष्पोंसे अलंकृत होता हुआ वह अपने अवधिज्ञानसे पंचमी उपवास व्रतके फलको जानकर वहाँ आया जहां उसके बन्धुवर्ग तथा मां-बाप अपनी स्नुषा ( पुत्रवधू ) सहित रुदन कर रहे थे। वे धाड़ देकर हाथ उठाकर धरातलपर अश्रु बहा रहे थे। वे बार-बार उसका नाम ले-लेकर कह रहे थे, हाय पुत्र, तू कहां चला गया ? उसके माता-पिता भूतलपर गिर पड़े थे। उसी समय उसने वहां अपनेको प्रकट किया। उसने अपने जीव रहित शरीरका भी अवलोकन किया और उसे आँखें फाड़-फाड़कर चंचल नेत्रोंसे देखा। उस अनुपम शरीरधारीको देखकर लोगोंने उससे पूछा-हे पुरुष परमेश्वर, आप कौन हैं ? उसने उत्तर दिया-में आपका वही नागदत्त हूँ जो अब देव हो गया है // 18 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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