________________ -9..17, 43.] हिन्दी अनुवाद 161 हिमादि सब प्रकारके शीतल पदार्थोंसे उसके शरीरका उपचार किया गया / लौंग और इलायचीसे सुगन्धित खूब जल छिड़का गया तथा पटमय बीजनों (पंखों) से अच्छी वायु की गयी। तभी एक याम व्यतीत होते ही मुख तीव्रतासे सूख गया और शरीरकी चेष्टा क्षणमात्रमें नष्ट हो गयी। यह देखकर पिताने एक उपाय किया। जालमय गवाक्ष ( खिड़की ) में जहाँसे सूर्यकी किरणें आया करती थीं वहां प्रभासे स्फुरायमान सूर्यकान्तमणि स्थापित कर अपने पुत्र नागदत्तसे कहा देखो, सूर्य उदित हो रहा है और वह आकाशमें गमन कर रहा है। अतः तुम अब शैय्याका परित्याग कर स्नान-पूजादि देवकार्य करो और सुपेयका पान करो। इसपर पुत्रने कहा-हे पिता, आपका यह कथन कष्टकारक है। आप पुत्रको प्यार तो " करते हैं किन्तु उपयुक्त बातका विचार नहीं करते। इस दुस्सह रात्रिमें घरके मध्य घड़ीयन्त्रकी ध्वनि सुनते हुए मुझे ज्ञात है कि अभी रात्रिके तीन ही रमणीय याम व्यतीत हुए हैं। न तो अभी सूर्यका प्रकाश प्रकट हुआ है और न उसकी किरणें ही फूटी हैं। अतः सूर्यके तेजसे प्रकट होनेवाले पदार्थोंकी भिन्नताएं नहीं दिखाई देतीं। मैं तो तभी अपने उपवासको समाप्त करूंगा जब सूर्यका प्रकाश प्रकट हो जायेगा और मैं देख लूंगा कि लोग अपने-अपने कामकाजमें लग गये हैं। तभी मैं जिनेन्द्रको सारभूत पूजा व देव, शास्त्र और गुरु इन तीनोंको भक्ति करूंगा, यदि तब तक मेरी शक्तियां नष्ट न हो जायें। तभी मैं शीघ्र मुनियोंके संघको पड़गाहकर उन्हें भोजन कराऊंगा और पश्चात् स्वयं अपना कार्य ( भोजन-पान ) करूंगा। इतना कहकर पुत्र मूर्छाके वशीभूत हो गया। तथापि जिनेन्द्रका स्मरण तथा अपनी मुक्तिके प्रदेश एवं अरहंतादि पंचपदोंका चिन्तन करता हुआ वह स्थिर रहा। अकारादि वर्णों तथा बिन्दुपूर्ण नभ (अर्थात् ओउम्) का स्मरण करते-करते ही उसके प्राण निकल गये और लीन हो गये / इस प्रकार नागदत्त एक क्षणमें स्वर्गलोकमें पहुंच गया। 21 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust