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________________ -9. 17.8] हिन्दी अनुवाद 159 थे। उन दोनोंके कुलगृहकी चूड़ामणि स्वरूप नागवसु नामकी पोनस्तनी (स्थूल स्तनोंवाली युवती) कन्या थी / उस कोमल और सरल कन्याका विवाह कमलपत्र सदृश नेत्रोंवाले नागदत्त नामक वणिक पुत्रके साथ हुआ। नागदत्त उस बालहंसके सदश गतिवाली नागवसु युवती पत्नीके साथ सुख भोगता रहने लगा। उसे अपने पिताके घरमें स्वजन व बन्धुवरोंके बीच दिन जाते ज्ञात नहीं होते थे // 15 / / 16. नागदत्तका श्रुतपंचमी व्रत ग्रहण कुछ दिन व्यतीत होनेपर वहां मनगुप्त नामक एक महागुणशाली मुनिका आगमन हुआ। वे महामुनि अनेक खेड़ों, ग्रामों और नगरोंको छोड़ते हुए चतुर्विध संघ सहित वहां पहुंचे थे। वे क्षमामें महोदधि और उन्नति में मेरुके समान थे, तथा सौम्यतामें चन्द्र, व तेजमें सूर्य तथा बलमें वे पवनके समान महान थे। वे अपनी तपस्या द्वारा अनेक पूर्वजन्मोंके दुःखोंका विनाश कर रहे थे। समस्त कर्मोंका मर्दन और दलन करते हुए व जरा-मरण और पुनर्जन्मकी परम्पराको विनष्ट करते हुए आकर शीघ्र नगरके बाहर वनमें ठहर गये / उनका आगमन सुनकर वहाँके समस्त नरेन्द्रोंमें महान् व ज्ञानी नरेश अपने पुत्र, बन्धु व कलत्रों सहित हर्षपूर्वक आये / वहाँ विराजमान देखकर राजाने उन मुनिराजकी वन्दना की जिन्होंने समस्त जानने योग्य श्रुतज्ञानरूपी समुद्रका अवगाहन कर लिया था। राजाके साथ तू ( नागकुमार उस जन्ममें नागदत्त ) भी भक्तिसहित व दोषरहित होकर आया था। मुनीश्वर द्वारा कहे गये धर्मको सुनकर राजाने ( अणु ) व्रत लिये और भलोप्रकार वहाँ बैठा। उस समय तूने भी सन्तोषपूर्वक फाल्गुन मासमें शुक्लपक्षको पंचमीके उपवासका व्रत ग्रहण किया। इस प्रकार मुनिके वचन सुनकर तूने तथा उस राजाने भो सब बातोंको पूर्णतासे ग्रहण कर लिया। और फिर मन में सन्तोष पाकर तू तथा वह राजा अपने-अपने सुन्दर गृह लौट आये // 16 // 17. व्रतको रात्रिको ही नागदत्तका स्वर्गवास सूर्योदय हो गया और अन्धकार पुंज हट गया / त्रिलोक प्रधान प्रभात हो गया। सारभूत अभिषेक और पूजा की गयी। फिर अनेक प्रकारके सभी दिव्य फल चढ़ाये गये। इस प्रकार क्रिया सहित जिनेन्द्रकी वन्दना करके मोहरूपी बन्धनका नाश करनेवाले मुनिराजको देखकर वह उनके चरणोंकी वन्दना कर उनके पास बैठ गया। उसने मुनिराजसे ज्ञानरूपी प्रकाश देनेवाला धर्मोपदेश सुना जिसमें समस्त त्रैलोक्यका मान-प्रमाण बतलाया गया था। सूर्य रक्तवर्ण होकर अस्त होने चला। वह वणीन्द्र भी अपने विशाल और सुन्दर गृहमें बन्धुओं और मित्रोंसहित धर्म चिन्तनमें लग गया। अन्धकार सघन हो गया, अर्द्धरात्रि बीत गयी। तभी उसके शरीरमें तीव्र दाहकारी तृष्णा (प्यास ) उत्पन्न हुई। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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