________________ -8.9. 14 ] हिन्दी अनुवाद 135 . 8. नागकुमार-तिलकासुन्दरी विवाह मेघवाहन नरेश स्वागतार्थ सम्मुख आया और उसने शत्रुरूपी हरिणोंके व्याध नागकुमारका नगरमें प्रवेश कराया। फिर उस तरुणियोंमें डाह उत्पन्न करनेवाले, उन्मत्त सुकंठरूपी चन्द्रमाके राहु नागकुमारका अपने घरमें सम्मान-सत्कार किया। उसने राजकुमारीके नृत्यमें उसके पदचापसे मिलाकर मृदंग बजाया / तब उस मुग्धाने घूमकर अनंगको देखा। फिर कन्यादान और विवाह हुआ जैसे मानो लक्ष्मीके संगसे गरुड़वाहन विष्णु संतुष्ट हुए हों। वह रामाभिराम नागकुमार अपनी उस नयी पत्नीके साथ ऐसा रहने लगा जैसे सोताके साथ देव राम। अन्य दिन एक श्रावक धर्मधारी वणिक् श्रेष्ठ ससुरके घर आया। उसने राजाके दर्शन किये और रत्नोंकी भेंट की। तत्पश्चात् नागकुमारने उस वणिक्से पूछा-क्या तुमने समुद्रके उस पार कोई आश्चर्य देखा है ? वणिक्ने उत्तर दिया-हे सुन्दर, आप तो मानो दशवें विष्णु ही हैं। इक्कीसवें भवनेन्द्र, तेईसवें सुरेन्द्र तथा अल्पज्ञानी गृहस्थों और नागों द्वारा वंदनीय पच्चीसवें तीर्थकर हैं। आप बारहवें रुद्र जैसे दिखाई देते हैं। इस मगर-मच्छोंसे भरे भयंकर समुद्रको लांघकर तोयावलि नामक द्वीप है, जहाँ नाना प्रकारके माणिक्य अपनी जाज्वल्यमान ज्योतिसे दीपकका काम देते हैं। वहाँ नेत्रोंको आनन्ददायी सुवर्ण निर्मित उज्ज्वल जिन मन्दिर है। जो महीतलरूपी सरोवरमें नित्य नया उत्पन्न होनेवाला पोला कमल सा दिखाई देती है / / 8 / / 9. तोयावलिका वट-वृक्ष, कन्याओं को पुकार व नागकुमारका वहां गमन हुई हैं / अतएव जो उस सत्पुरुषके समान है जिसके वंशका मूल पुरुष चिरस्थायी कीर्तिमान है। - , उसमें बिना फूलोंके खूब फल सम्पत्ति थी। अतः वह उस सत्पुरुषके समान था जो निष्कारण उपकार करता है। वह कपियों द्वारा सेवित था जैसे सत्पुरुष कवियों द्वारा। वह पक्षियोंको अपने फल का दान किया करता था जैसे सत्पुरुष द्विजों को। वह पथिकोंके श्रमको अपनी छाया द्वारा दूर करता था जैसे सत्पुरुष दीन-दुखियोंके संतापको अपने धन द्वारा। वह पत्तोंको झराया करता था जैसे सत्पुरुष पात्रोंका उद्धार करता है। उस वट-वृक्षसे रगड़कर हाथी अपने गंडस्थलोंकी खुजली मिटाया करते थे। उस वृक्षपर कुछ कन्याएं उतरतो हैं और अन्यायकी पुकार करती हैं। एक सुभट हाथमें गदा लिये उनको रखवाली किया करता है / हे देव, मैंने उन कन्याओंको अपनी आँखोंसे देखा है / वह बड़ा भीमकाय योद्धा उन विद्याधर कन्याओंको कुछ बोलने भी नहीं देता। वहां एक और भीषण महासुभट रहता है जो अपने बाहुबलके माहात्म्यसे उत्तेजित होता हुआ उन कन्याओंके प्रेमसे प्रेरित होकर उन्हें बुलाता और रोकता रहता है। उस बनियेको बातें सुनकर वह नरश्रेष्ठ अपने मन में चिन्ता करने लगा। उसने उस सुदर्शना नामक देवीका ध्यान किया। उसने आकर कहा-हे गुणगणधारी कुमार, कहिए मैं क्या करूं? .आज आपको कौन सी विद्या हूँ? प्रभुने कहा-मुझे आहार विद्या दीजिए और दूसरो ऐसो संवाहिनी विद्या जिससे मैं समुद्रके दूसरे तटपर आज ही जा सकू। तब सुदर्शना देवीने उसे वे दोनों अचूक विद्याएं प्रदान की। वह घनस्तनी संवाहिनी विद्या एक देव विमान द्वारा प्रभुको आकाशके प्रांगणमें ले उड़ी // 9 // . . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust