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________________ -8. 7. 14 ] हिन्दी अनुवाद 133 दिखलाया है ? यह पुरुष मृत है या जीवित ? क्या इस चित्रके सदश कोई दूसरा मनुष्य है ? यदि वर्तमान में कोई ऐसा हो तो हे भद्र, उस युवकको जल्दी ले आओ। जिससे वह मेरे प्राणोंकी रक्षा कर सके / यह सुनकर वह सुन्दर महाव्याल बोला-इस सज्जनको तो पुरन्दर भी सराहना करते हैं / हे सुन्दरी, सचमुच ही यह वर रति और प्रोति से युक्त कामदेव है। सचमुच ही यह मकरध्वजसे लांछित जयंधर राजाका गुणवान् पुत्र है ? बहुत क्या, मैं उन्हें ले आता हूँ और ऐसा करता हूँ जिससे आठवें दिन वह तमसे आ मिले। ऐसा कहकर सभट महाव्याल उत्तरोत्तर नये वेगसे हस्तिनापर गया। वहाँ उसके ज्येष्ठ सहोदर भ्राता जयवर्म और जयावतीके पत्र व्यालने: नागकुमार नरेशको दिखलाया। और परिचय दिया कि यह विजयलक्ष्मीका निवास मेरा भाई आपको प्रणाम करता है। अपने इस सेवकको आज्ञा दीजिए। अब इसके लिए आगे आप ही शरण हैं / महाव्यालने समस्त वृत्तान्त कहा जिसे सुनकर राजा नागकुमार वहांसे नगाड़े, बुक्का और भेरियोंके निनाद सहित वहाँ से चल दिया। उज्जैनी पहुँचनेपर स्नेहसे आंदोलित राजा जयसेन आधे मार्गपर चलकर उनसे मिले। उन्होंने उन विजयलक्ष्मोके नाथ नागकुमारको नगरमें प्रविष्ट कराया। शीघ्र ही कन्यादान किया और विवाह सम्पन्न कराया। इस प्रकार प्रियदूतके वचनोंसे उन्होंने एक-दूसरेको अपने नेत्रोंसे देखा और वे परस्पर अनुरक्त हो गये तथा वधू-वर बनकर वे दोनों प्रेममें ऐसे आसक्त हुए जैसे तपाये हुए दो लोहखण्ड परस्पर जुड़ जाते हैं // 6 // 7. नागकुमारका मेघपुर गमन निरन्तर सैकड़ों सुखोंकी श्रेणीभूत उज्जयनीमें रहते हुए नागकुमारने समझ लिया कि सिंह सदृश स्कंधोंवाला महाव्याल नामक सुभट निर्दोष है / तब उन्होंने उससे पूछा-हे अनुभवशील भद्र, दक्षिण प्रदेश में क्या कोई कौतूहल देखा-सुना है ? यदि हां तो उसे कह सुनाओ। यह सुनकर उस सेवकने कहा-किष्किध-मलय प्रदेशके मेघपुर नगरमें वैरियोंका विनाश करनेवाला मेघवाहन नरेन्द्र है जो बुद्धिमें बृहस्पति और ऋद्धिमें इन्द्र ( सुरेन्द्र ) रूप है / उसकी प्रिय रानी मेघबाला है और सुता है तिलकासुन्दरी, जो अपने काले केशों सहित ऐसी शोभायमान है मानो स्वयं रतिने कृत्रिम बालिकाका रूप धारण किया हो। सब लोग कहते हैं कि उसने ऐसी प्रतिज्ञा की है कि जो श्रेष्ठ पुरुष उसके नृत्य करते समय उसके चंचल पैरोंके पतनको शैलीको समझकर मृदंग बजा सकेगा, वही उसके मनके अभिमानको भंगकर उसका पति होगा। यह सुनकर राजाने कहा-हे कामको क्रोड़ा करनेवाले मही-भ्रमणशील, तुम वहां क्यों नहीं गये तथा उसे अपने वाद्यकौशलसे क्यों नहीं जीता? इसपर भृत्य महाव्यालने स्वच्छन्द भावसे उत्तर दिया-हे देवों, मनुष्यों और खेचर द्वारा सेवित देव, मेरे पास वाद्यविद्या नहीं है / तब नागकुमारने कहा-मेरी जो गृहिणी जहाँ-जहां विवाही गयी हैं उन्हें तहां-तहां पहुंचाकर शीघ्र आ जाओ। फिर अपनी पहले तीन प्रिय पत्नियों सहित तथा भटों और सामंतों द्वारा सेवित और रक्षित होकर हृदयमें प्रेम भरे हुए मकरध्वज पवनमें अपनी मकरसे अंकित ध्वजा उड़ाते हुए उस मेघपुर नगरमें पहुंचे // 7 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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