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________________ -8. 6.2 ] - हिन्दी अनुवाद 131 इस बीच एक पथिक आया। उससे नव कमल सदश मुखवाले वरयिता महाव्यालने पूछातुम कहाँसे आये हो ? क्या तुमने कोई आश्चर्य देखा है ? तब उस विदेशीने कामकी बात कही। उज्जैनी में श्री जयसेन राजा हैं जिनके दर्शनमात्रसे अनुराग उत्पन्न करनेवाली उनकी प्रिया सुखवती है / उनकी पुत्री है मेनका / जो किसी पुरुष को नहीं चाहती, भले ही वह कामदेव सदृश हो या इन्द्रके समान। यह सुनकर महाव्यालने पाण्डयनरेशसे पूछा और वह अपनी नयी पत्नीको वहीं छोड़कर उज्जैनो गया। रविवारके दिन वह अन्य अनेक उत्तम वरोंके साथ राजमहल में प्रविष्ट हुआ / उसे महलके छतपर बैठी हुई उस राजकुमारीने देखा जो अपनी मीठी वाणी द्वारा कोकिल कहा-यह वर तो कामदेव जैसा है। क्या तुम इसका भी वरण नहीं करोगी जैसे लक्ष्मी ने भी 5. महाव्यालको निराशा व गजपुर जाकर नागकुमारको चित्रपट दर्शन सखीके इस वचनको सुनकर वह कन्या बोली-यह तो मेरा भ्राता है। बिना वसन्तके कन्यारूपी चमेली विकसित नहीं होती। हाय माता जो हो, सो हो करनेसे क्या जो प्रिय नहीं है उससे नेत्र नहीं मिलते / इसपर वह सुन्दर नेत्रवान् वहाँसे निकल पड़ा तथा अपने स्वामीके पक्षका पोषण करता हुआ बह गजपुर गया। उसने अपना अनिष्ट काल देख लिया। वहाँ घरमें प्रवेश कर अपने ज्येष्ठ भ्राता व्यालको देखा / उसे प्रणाम करते हुए महाव्याल बोला-हे देव, सुनिए, मैं भी जिसकी सेवा करूंगा वह नागकुमार ही है अन्य कोई नहीं। वही रूपमें काम और त्यागमें कम है। में उन्हीं प्रभुके दर्शन करना चाहता हूँ। जिस कन्याने मुझे नहीं चाहा वह उन्हींको चाहे। मुझे प्रभु नागकुमारके चित्रसे अंकित-पट दीजिए जिसपर वह वीर व्याल तत्काल नागकुमारके महलमें गया और वहां उन्हें भूमिपर चलते हाथमें चमकती हुई छुरी लिये पराक्रमी रूप में देखा। उसने उनकी अनुमति ली और एक चित्रकारको बुलाकर कहा-इन प्रत्यक्ष कामदेवको सत्पुरुषोंके लक्षणोंसे युक्त चित्रित करो। चित्रकारने तत्काल चित्र लिखा। व्यालने उसे देखा और उसका शरीर हर्ष में फूल उठा। उसने चित्रकारको एक सहस्र द्रव्य दिये। उस चित्रपटको हाथ में लेकर वह तीव्र तेजस्वी वायुवेगसे पुनः अपने घर गया। उस चित्रपटको लेकर महाव्याल अगले रविवारके दिन उज्जैनीके राजमहलमें प्रविष्ट हुआ। बहनने देखा कि भाई हाथमें चित्रपट लेकर आया है / उसने रूढिअनुसार मान वचन ताम्बूल एवं पोढ़ाद्वारा उसका सम्मान किया। फिर महाव्यालने उस विशाल निर्मल कामिनियोंको विरहज्वर उत्पन्न करनेवाला चित्रपट फैलाकर दिखलाया / वह कन्याको भाया क्योंकि उसमें कामोत्पादक कामदेवका चित्रण था / / 5 / / 6. नागकुमारका उज्जैनकी राजकुमारीसे विवाह __ हे परमेश्वर, सरस इक्षुदण्डका धनुष धारण किये हुए मानिनी ललनाओंका मान हरण करनेवाला, मदन क्या महादेवके द्वारा दग्ध नहीं किया गया ? क्या इस मनुष्यने कोई कौतूहल P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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