SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -8.4.4] हिन्दी अनुवाद 129 नहीं है जैसे चुनासे जली जीभवालेको अन्न अच्छा नहीं लगता। पथिकको यह बात सुनकर जयवतीके पुत्र महाव्यालने प्रसन्नमुख होकर वहां जानेकी तैयारी की। वह वहाँ पहुँचा और मथुरा पुरोमें प्रविष्ट हुआ। उसे एक दूकानपर बैठा लोगोंने देखा। तब राज्यश्रीके रमणमें प्रवीण राजसेवक कामरूप नामक प्रचंड भटने उस सुन्दरी कामरतिको घरसे निकाला, जैसे हाथी हथिनीको महा सरोवरसे निकाले / वह जब नगरको हाटके मार्गसे चली तब कोई भी उसके सम्मुख ठहर नहीं पाता था। उस मुग्धा कन्याने मदमाते चंचल नेत्रोंसे उस दुकान में बैठे नरको देखा जेसे मानो उसके मनमें अभिमानका क्षय और विरहका भय उत्पन्न करनेवाला कामदेव का बाण प्रविष्ट हुआ हो // 2 // 3. कामरतिको प्रतिकूल प्रतिक्रिया और संग्राम अश्रुधारारूपी नदी बहाते हुए उस सुन्दरीने (अन्याय ) की घोषणा की-अरे इस बलवान् पुरुषने दूरसे ही देखकर मुझे अवरुद्ध किया और जीत लिया है / हे नरदेव, तुम मेरी रक्षा करो। इस प्रकार वह कन्या विलाप करने लगी। इसपर रुष्ट होकर हाथमें खड्ग लिये वह योद्धा सम्मुख आया और मर, मर कहता हुआ दुर्वचन बोलने लगा--रे परसन्तापी, घोर पापिष्ठ, हरामजादे, कुमारीचोर चल हट यहाँ से। फिर वह बलशाली महाव्याल और कामरूप नामक शूरवीर पुलकित देह होकर चल पड़े, बलखाने लगे, परस्पर प्रहार करने और स्थिर होने लगे। उन्होंने धकधकातो हुई अपनी तलवारें घुमायौं। उनके रत्नजटित वसुनंदक नामक शस्त्र चमकने लगे और परस्पर टकराकर खुनखुनाने लगे। जब वे उठते तो सूर्य भी थर्रा उठता और जब वे पड़ते तब शेषनाग भी अपने स्थानपर स्थिर न रह सकता। उनके हाँकें लगानेसे भुवन भाग फूटने लगता और प्रहार करनेसे आकाशमें निनाद उठ जाता। फिर क्रुद्ध होकर जयवतीके पुत्र महाव्यालने योद्धाओंके पुंजका मर्दन दिखलाते हुए कुछ हटकर और फिर आगे बढ़कर उछलकर व संघर्षणकर सहसा खड्गसे खड्गको टक्कर मारकर उस बलवान् शत्रुओंके विनाशक पाण्डयनरेशके किंकरके केशोंयुक्त, ओठोंको चबाते हुए, कुण्डलोंसे मंडित गंडस्थलोंसहित सिर काट डाला। और उधर उस प्रेमका विस्तार करतो हुई राजनंदिनी कामरतिका मुख-कमल कमलके समान ही प्रफुल्लित हो उठा // 3 // 4. महाव्याल-कामरति विवाह व उज्जैनो गमन कामरूप नामक भटके मारे जानेपर, वह जो कामरति राजकुमारी कामसे पीड़ित हो चुकी थी उसका कन्यादान कर दिया गया। और वर महाव्यालने उसका परिणय कर लिया। मालती भौंरेंके लालनसे विकसित होती है तथा चक्रके अवलोकनसे चक्रवर्ती / जो जिसपर अनुरक्त हो वह उसीको नारी है। तथा दूसरेके लिए वह प्रलयकी बीमारी बन जाती है। वे दोनों पतिपत्नी नये प्रेमसे भरपूर रतिक्रीड़ा करते हुए रहने लगे। 17 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy