________________ -7. 14.7 ] हिन्दी अनुवाद 123 12. अलंघ नगरपर नागकुमारका आक्रमण आपका यश श्रेष्ठ कवियों द्वारा विरचित कर्णमधुर और दिव्य काव्यके गानसे प्रकट होता है। तन्त्रीवाद्योंसे भी आपका यश घोषित होता है और घोषित होता है वन्दीजनोंके नादसे भी। इस प्रकार मैंने आपका यश इस भूतलपर सुना है। पाताल में नागों और स्वर्गालयमें देवों द्वारा उसका गान सुना गया है। यह सुनकर जयन्धरका पुत्र नागकुमार चल पड़ा जैसे हरिणको गन्धका लोभी सिंह। उसे समस्त परिवार सहित खेचर पुरुष हर्ष बढ़ाते हुए सुवर्णके विमानों द्वारा ले गये। उन्होंने योद्धा, हाथी, रथ और घोड़ेरूपी चतुरंगिणी सेना द्वारा अलंघ नगरको घेर लिया। ___ तब सुकण्ठ विद्याधर निकल आया जैसे शत्रुबलका हरण करनेवाला विष्णु / वह धनुषसे विभूषित देहसहित बाण छोड़ता हुआ ऐसा दिखाई देता था जैसे इन्द्रधनुष सहित वर्षा करता हुआ मेघ // 12 // 2 // . . 13. नागकुमार और सुकण्ठका सामना भूगोचरी नागकुमार और खेचर सुकण्ठ अपने सैनिकों सहित गजोंपर बैठकर परस्पर सम्मुख आये। वे गज जलधरोंके समान जलकी बूंदें बरसा रहे थे। उनके दाँत दृढ़ और कठोर वज्रमण्डलके समान बढ़े हुए थे। वे रुनझुन करती हुई मणियोंकी किंकिणियोंसे शोभायमान थे। उनके गण्डस्थलोंसे निरन्तर मद चू रहा था। उनपर सुवर्णमय.रेशमी वस्त्रकी ऊँची ध्वजाएँ स्थापित थीं। वे सूंडोंकी नासिकासे दूसरे महागजोंको गन्ध ग्रहण कर रहे थे तथा अपने दन्तोंके अग्रभागोंसे घोड़ों और मनुष्योंके अंगोंको फाड़ रहे थे / देवोंको प्रसन्न करनेवाले नागकुमारने कहा-रे पापी, तुझे यह तेरा पाप खा जायेगा। परायो धरती, परायी स्त्री और पराये धनकी तृष्णाके कारण, रे दुराचारी, तू खलों और चोरों जैसा दण्ड पाकर मरेगा। इसपर सुकण्ठने कहा-अरे मरो मत, यहाँसे हट जा। यदि तू अपने जीवनकी कामना रखता है तो कामिनी सुखका स्मरण कर। इसपर दोनोंने क्रुद्ध होकर एक-दूसरेपर ऐसे लम्बे-लम्बे बाण छोड़ना प्रारम्भ कर दिया जो शत्रुके पराक्रमका विच्छेद करनेवाले और कोपाग्निको ज्वालाके समान थे // 13 // 14. संग्राम और सुकण्ठका मरण उधरसे सुकण्ठने लोहेके अग्रभागसे युक्त प्रत्यंचासे बाण छोड़े जो मानो लोभयुक्त और गुणोंसे च्युत थे। इधरसे नागकुमारने सीधे शत्रुपर चीत्कार करनेवाले बाण चलाये मानो वे आर्जव गुणसे युक्त मोक्षके लिए तत्पर हों। सुकण्ठने चित्र-विचित्र चलायमान बाण छोड़े मानो वे चित्तसे विचित्त और चंचल हों। इधर कुमारने पंखयुक्त आकाशगामी बाण चलाये जैसे वे नभचर पक्षी हों। सुकण्ठने धनुषसे छूटकर, दूसरेको मारनेवाले बाण चलाये जो मानो धर्मसे रहित और लज्जाजनक थे। तो कुमारने रोषसे दुर्धर बाण छोड़े मानो वे रोषसे खेद-खिन्न होकर शत्रुद्वारा दुस्सह हो गये हों। सुकण्ठने तीखे व कवचका भेदन करनेवाले बाण चलाये मानो वे कठोर स्वभावी व दूसरेके मर्मस्थलको भेदनेवाले हों। तो कुमारने फलसहित ऐसे बाण छोड़े जिन्होंने समस्त दिशाओंको भर दिया। मानो वे अपने कार्यमें सफल और चलानेवालेकी आशाको पूर्ण करने में समर्थ थे / बस, अब वह प्रजाबन्धुर नागकुमारके बाणोंसे आहत होकर चलने में असमर्थ हो गया मानो उसे प्रलयकालने खा लिया। इसी बीच व्याल आदि धीर वीर भटोंने संग्राममें P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust