________________ -7. 5. 22 ] हिन्दी अनुवाद 115 असाधारण महाभट, अपने खड्गकी धारासे शत्रुके गज समूहका विदारण करनेवाला, सिन्धुदेश का बलवान भूमिपति प्रचण्ड प्रद्योतन अपनी राजधानी सिंहपुरसे निकलकर गिरिनगर नरेशके ऊपर आक्रमण कर रहा है। अब मुझे अरिवर्म मांडलिककी सहायता करना है, और हे भद्र, आज ही मुझे वहां जाना है। हे सज्जनोंके मनों और नेत्रोंको सुख देनेवाले नरेश्वर, मैंने आपको अपने गमनका कारण बतला दिया। इसपर पाहुने नागकुमारने कहा-यद्यपि मैं रणमें अपना हाथ नहीं डालता, तो भी हे मित्र, मैं भी तुम्हारे साथ चलूँ और सुभटों की भिड़न्त देखू // 4 // 5. गिरिनगरको यात्रा प्रलयको मारीके समान भुवनको ग्रसित करती और गम्भीर ध्वनि करती हुई संग्राम भेरियोंके साथ सेनाएं चल पड़ी। वे सन्नद्ध और क्रुद्ध थीं, ऊँचे-ऊँचे ध्वज उड़ाए हुए थीं। तूणीर कसे हुए थे, और धनुषोंको प्रत्यंचापर बाण चढ़े हुए थे। योद्धा हाथियोंपर सवार थे। चामरोंके समूह चलायमान थे। छत्रोंसे अन्धकार फैल रहा था। तुरंग चलाये जा रहे थे, और मातंग प्रेरित किये जा रहे थे, धूलि उड़ रही थी और उससे सेना कहीं कपिलवर्ण, कहीं कपूरके समान धवल और कहीं कस्तूरीके सदृश काली पड़ रही थी। समस्त सेना बैरियोंपर विपत्ति ढानेपर तुली थी। भटोंके कारण सेना रोकी नहीं जा सकती थी। रथोंकी लीके भूमिपर पड़ रही थों। और सर्वत्र रोष ही रोष भरा हुआ था। ऐसी थीं वे सेनाएं बैरियोंके सिर काटनेवाले त्रिभुवनरतिके पति नागकुमारको पथा कुलरूपी गगनके चन्द्र अन्तरपुरके नरेन्द्रके दुर्गोंका अपहरण करते हुए, सैनिकोंके पैरोंके भारसे धरणी भी चलायमान हो रही थी। मन्दर पर्वत भी टलटलाने लगा। समुद्र भी झलझला उठा। और शेषनाग भी कांप उठा। अपने खड्गोंको जगमगाते हुए, मार्गोका निर्दलन करते हुए व एकमात्र समरपर चित्त लगाये हुए वे सैन्य गिरि नगर आ पहुँचे / सहायताकी इच्छा रखनेवाले अरिवर्म राजाके सुकृत फलवान् हुए। मित्रोंसे मित्र मिले। उधर चन्द्र प्रद्योत भी आ चढ़ा। अरिवर्म भी तैयार होने लगा। वह महान् राजा चन्द्रप्रद्योतको अपनी पुत्री नहीं देना चाहता था और इस कारण वह अपनेसे अधिक बलवान् शत्रुसे जूझनेके लिए तैयार हो गया // 5 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust