________________ -7. 4.6 ] हिन्दी अनुवाद 113 प्रवालों और किसलयोंके समूहसे अवरुद्ध भूमिपर डोलते हुए लाल और लम्बायमान न्यग्रोधका भैंसें भक्षण करने लगीं, जैसे कामुक रानियाँ नग्न मुनिगणको भी खा डालती हैं ( भ्रष्ट कर देती हैं)। दुर्धर भारके किणसे अंकित सुन्दर शरीरधारी बैल कोमल तृणका मात करने लगा। गधागधीको निष्ठुर रेंक वनके हरिणोंके कानोंमें खटकी। उधर राजा नागकुमार अपने परिजनों सहित उन विषैले आमोंको चूसने और उनका रसास्वादन करने लगा। पर न तो कोई मरा और न मूछित हुआ। क्या कहीं जगत्में बलवान पुण्यका क्षय होता है ? विशेष आश्चर्य रससे चकित होकर तथा राजाके आगे खड़े होकर हँसते हुए एक पुरुषने अपना नाम दुर्मुख भील बतलाया और कहा-कि यह विषैले आमोंका वन है जिसने बहुत लोगोंका संहार किया है // 2 // 3. पाँच सौ वीरों द्वारा नागकुमारको सेवा स्वीकृत दुर्मुख भील कहता गया-इन विशाल आम्रवृक्षोंके फलोंके विषसे भग्न होकर मनुष्य यमपुरके मार्गपर लग गये / हे देव देखिए तो, उन मृतकोंके हाड़ोंके ढेर लगे हुए हैं जिनका मांस मांसभक्षी गृद्धों द्वारा ( नोच-नोचकर ) खा लिया गया है। उनके आभरण और वस्त्र मैंने ले लिये हैं किन्तु आपने सम्पूर्ण पुण्यका अर्जन किया है। आपपर कोई बैरी प्रहार नहीं कर पाता। विधिका विधान भी दूर हट जाता है और विष भी अमृत रूपसे प्रवृत्त हो जाता है। ( बस फिर क्या था ) एकने दूसरे और दूसरेने तीसरेसे कहा-ये ही वे अत्यन्त भाग्यवान् नागकुमार हैं / इस खबरको पाकर पर्वत व धरणीके समान धैर्यवान पाँच सौ शूरवीर वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने नागकुमारको प्रणाम करके कहा-हे स्वामी, हम आपके सेवक हैं। उज्जैनीमें एक मुनिराजने यह भविष्यवाणी की थी कि जिसके शरीरमें ये विष-फल प्रविष्ट होकर पुष्टि उत्पन्न करें वही तुम्हारा प्रभु है। हे नाथ, अब हमें आपके दर्शन हो गये। आप तो मानो साक्षात् मधुसूदन ( विष्णु ) ही हैं। इस प्रकार उन शूरवीरों के भृत्यत्व स्वीकार कर लेनेपर नागकुमारने अपनी विजय-यात्रापर फिर प्रयाण कर दिया। चलते-चलते वे रमणीश्वर नागकुमार अन्तरवनमें पहुँचे। वहाँके अन्तरपुर नामक नगरके नरेश्वर अन्तरराज नामक थे / / 3 / / 4. नागकुमारका अन्तरपुरमें स्वागत व गिरिनगरपर शत्रुसंकट अन्तरपुरका नरेश विजयरूपी विलासिनीके स्नेहको प्राप्त रतिपति नागकुमारके सम्मुख आया और उसने मंगल वाद्यों सहित उन्हें अपने घरमें प्रविष्ट कराया तथा हर्षपूर्वक उनका आतिथ्य किया / उस पुराधीशने कहा कि हे कन्याओंके कान्त, आप सुख भोगते हुए मेरे प्रासादमें रहिए। आप आज ही नये-नये आये हैं और हमने सज्जनोचित शिष्टता का पालन किया है। (किन्तु यहाँ एक दूसरा प्रसंग उपस्थित है)। यहांके मांडलिक राजा अरिवर्गकी पुत्री गुणवती नामकी है। उस कामको भी मोहित करनेवाली क्षीण-कटि व दूर्वाके समान श्यामवर्ण सुन्दरोको उसके पिताने अपने भगिनी पुत्रके निमित्त रक्षित रखा है। किन्तु उसके लिए मात्सर्यसे भरा 15 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust