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________________ सन्धि 7 1. नागकुमारका उर्जयन्त पर्वतके लिए प्रस्थान तथा विषैले आम्रवनमें प्रवेश लक्ष्मोमतिको उसके पिताके घर छोड़कर नागकुमार अपने वोरों सहित सुर और असुरों द्वारा वन्दनीय उर्जयन्त पर्वतको चला। अपनी प्रियाको प्रिय वचनों द्वारा राजी करके और उसे तत्काल उसके पिताके घर ठहराकर. व्याल अक्षय और अभय एवं चन्द्र के समान कान्ति-युक्त अपनी तीनों गहिणियोंको साथ लेकर अपने शत्रुरूपी गजोंके सिंह राजा नागकुमार चल पड़ा। दुन्दुभि गरज रही थी, झल्लरि बज रही थी, योद्धाओंकी सेना आगे बढ़ रही थी और पथ्वी डोल रही थी, शेषनाग कांपते थे और नागिनी खेदखिन्न हो रही थी। घोड़ोंके समूह हिनहिनाहटको ध्वनियों सहित तथा रथ चक्रोंकी चिक्कार सहित चल रहे थे। गज लटकते हए घण्टोंकी टंकार सहित चल रहे थे। भौरोंको झंकारके कारण और कुछ सुनाई ही नहीं देता था। सेनाके पैरोंके आघातसे उठे धूलसमूहसे आंखें ऐसी धुंधली पड़ रही थीं कि मार्ग भी सूझता नहीं था / इस प्रकार चलते-चलते वह सेना जलन्तो नामक अटवीमें पहुँची। वहां उन्होंने कैसा आम्रवन देखा जैसा विषसे भरा हुआ विषधरका मुख, अथवा जैसा त्रिपुरारिके गलेका.सर्प / वह अटवी शाखामृगों एवं शुकोंकी चंचल मूंछोंसे उज्ज्वल हो रही थी। वह मूछित पड़े हुए भौंरोंको कालिमासे चमक रही थी, तथा वहाँकी समस्त भूमि नरकंकालोंकी राशिसे पीली पड़ रही थी / इस प्रकार नागकुमार उस विषैले वृक्षोंके वनमें पहुंचा जो महादेवके सिरके समान हड्डियोंसे विभूषित था। वहां बहुतसे मण्डपों सहित तम्बू ताने गये, जैसे मानो मूड़ मुड़ायी हुई दासियाँ बैठा ली गयी हों / घोड़े बांध दिये गये और वे मनमाना घास चरने लगे, जैसे कुशिष्य कुशासनका सम्मान करते हैं। कुटिल अंकुशोंके वशीभूत हुए उन्हों हाथियोंका नित्य किया जानेवाला दान ( मद ) शोभायमान होता है जिन्होंने अपनेआपको बन्धनमें रख लिया है, जिस प्रकार कि दान उन्हों हाथों द्वारा दिया गया शोभायमान होता: जिन्होंने कुटिल कर्मोपर अंकुश लगाकर आत्मनिर्भरता प्राप्त की है, तथा अपनेआपप है। और नियमोंकी प्रतिज्ञाका बन्धन लगा लिया है // 1 // व्रतों 2. सेनाका निवेश और विषलेमीका भक्षण रथोंके चक्के घुमाये गये और रोके गये। उन्होंने ध्वनि उत्पन्न की और फिर रुक कर मौन हो गये / ऊँट ऊँचा मुख करके वनमें घर / वह द्राक्षारसको खोज करता तथाच मोठी लताओंमें मग्न हो रहा था। हत्यारे ऑकको कौन नहीं जानता जिसका सदूसन.२, बातके रोगी, विट और आयुर्वेदके शास्त्रोंने किया है। विशाल हाथी शल्यका वृक्षक्स में करने लगा। उसकी स्वर-ध्वनिसे हृदय में बाण-सा लगता था। करभको पीलु वृवताडे मीठा लगा, दूसरे वृक्षोंको उसने समोप होनेपर भी छोड़ दिया। अपने फलों, P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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