________________ -6. 15. 5 ] हिन्दी अनुवाद 105 शत्रराजा सोमप्रभने कहा-तुम जो असत्य झूठमूठ नाना प्रकारका बकवाद कर रहे हो तथा अहंकार धारण किये हो तथा उद्योगहीन होकर लज्जित नहीं होते सो तुम मेरे आगे वराक और निहीन हो / तुम और तुम्हारा राजा मेरे पैर की धूल हो। ___ यह कहकर राजाने अपने सेवकोंको आज्ञा दी कि इस क्रोधी असम्बद्ध-प्रलापी तथा अत्यन्त मात्सर्यसे कम्पायमान दूतका मान खण्डित करके तथा उसे दण्डित और मुण्डितकर बाहर निकाल दो // 13 // 14. युद्ध में परास्त होकर सोमप्रभका वैराग्य राजाका आदेश सुनकर सेवकगण अपने हाथोंमें तलवार, शूल, मुद्गल और मूसल लेकर उठ खड़े हुए। उन वैरियोंने शूरवीर व्यालको चारों दिशाओंमें ऐसा घेर लिया जैसे मानो मेघोंने आकाशमें सूर्यको ढक लिया हो / जो एक किंकर उसके हाथको कर्कश टक्कर सहन न कर सका उसकी उसने तलवार छीन ली और वह फिर युद्धका रंग दिखलाने लगा। वह चलताफिरता, निकलता, आगे बढ़ता, बलखाता, कूदता, भिड़ता और भटोंका मुकाबला करता। वह उन्हें मारता, रौंदता, चपेटकर पकड़ रखता, पछाड़ता, मारता और हुंकार भरता, चूर-चूर करता, ज्वर उत्पन्न करता, चुनौती देता, विनाश करता, लोटता और फिर उठकर निकलता। वह शत्रुओंके प्रहारोंको बचाता, विदारण करता और उनके विरुद्ध आगे बढ़ता, छेदता, भेदता और रुधिरमें तैरता / वह सुभट अपने हाथमें लम्बी चमकदार तलवार लिये हुए ऐसा दिखाई देता था मानो बिजलीसे विभूषित मेघ हो / उसने राजाको अपनी ओर आते देखकर रोष से उत्तेजित हो सहसा उसे बांधकर धर दिया। उसे मूसलसे ताड़ित तो नहीं किया, किन्तु एक क्षणमें पराजित कर उसके राज्यकी भूमिको हर लिया। जिस प्रकार राहु चन्द्रमाको निष्प्रभ कर देता है, उसी प्रकार सोमप्रभको श्रीहीन करके व्यालने छोड़ दिया। सोमप्रभने भगवान् त्रिगुप्त मुनिके पास दीक्षा ले ली // 14 // 15. वनराजका राज्याभिषेक व सोमप्रभका विहार साहसमें उत्कृष्ट धीर पुरुषोंकी दो ही गतियां होती हैं-या तो कोमलकमल हस्तवाली राज्यश्री अथवा प्रव्रज्या। सोमप्रभ नरेशने अपने मनमें जिनेन्द्र और उनकी दिव्य ध्वनिको धारण किया और वह परमार्थ हेतु निर्ग्रन्थ मुनि बन गया। उधर व्यालने अपने प्रभु नागकूमार तथा उनके श्वसुरको बुलवाया और वे आये, जैसे मानो देवोंके इन्द्र देवों सहित आये हों। मंगलगीतोंसे गूंजते हुए राजमहलमें वनराजके सिरपर राजमुकुट बांधा गया। 14 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust