SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -5.9.13 ] हिन्दी अनुवाद 8. नागकुमारका काश्मीर गमन उस जालन्धर नरेशने कहा-उज्ज्वल पूर्णचन्द्रमुखी, नयनानन्ददायिनी नन्दकी पुत्रीने मुझे वीणा-वाद्यमें जीतकर फेंक दिया। अतः अब मैं पुनः उसी कलाको सीखने चला हूँ। कुछ काल जानेपर मैं उस प्रियाका परिणय कर सकूँगा। यह सुनकर किन्नरीके पति नागकुमारने उसका सम्मान किया। फिर वह वीणागुरु तो अपनी इच्छानुसार कहीं चला गया और इधर पीछे प्रभु नागकुमारने व्यालसे वार्तालाप किया। व्यालने पुनः अपना राज्य उसी दुर्वचनको दिया जो अपने स्वजनों और परिजनोंका सन्तोष और पालन-पोषण करने लगा था। फिर नागकुमार अपनी दोनों गृहिणियों, उस तुरंग, उस हस्ती और उस वोर व्यालको साथ लेकर उस काश्मीर देशको गया जहाँको वायु केशरको धूलिसे सुगन्धित होती है / वह चलकर काश्मीर पट्टनमें पहुँचा / वहाँका राजा नन्द अपने चमर, छत्र, सेवकों व रथसे विराजमान होता हुआ उसके स्वागतार्थ सम्मुख आया। नागकुमारके नगरमें प्रवेश करते ही नारियोंको प्रेमका ज्वर चढ़ आया। कोई सुन्दरी दुश्चित्त होकर झूरने लगी, तो कोई इस कामदेवके दर्शनमें आसक्त हो गयी। कोई मोहसे वेसुध हुई अपने घर आये जामाताके पैर पड़ने तथा घृतसे पैर धोने लगी, पानी समझकर तेल देने लगी और ताम्बूलमें खदिर कहकर लकड़ीका बुरादा डालने लगी। कोई इतनी अन्यमनस्क हो गयी कि अपना शिशु जानकर बिल्लीके बच्चेको गोदमें लेकर चल पड़ी। कोई दुग्धको धूप देने लगी, तो कोई पानीका ही मन्थन करने लगी, और कोई बिना धागेके माला गूंथने लगी। कोई सुखोंकी जननी उस सुभग नागकुमारके समीप जा पहुँचो और बोली-मैं आपकी प्रिय दासी हूँ। इस प्रकार नगरका दर्शन करते हुए नागकुमार राजमहल में पहुंचा। वहां उसने मानिनी स्त्रियोंके मनको खण्डित करनेवाला स्नान मण्डनादि किया तथा भोजन-भूषण आदि विधियां सम्पन्न कों और देवांग वस्त्रोंको धारण किया // 8 // 9. काश्मीरी राजकुमारीका मोहित होना फिर किसी अन्य दिवस नागकुमारने कुछ हंसते हुए नन्दराजासे पूछा-क्या इस नगरमें कोई वीणा वाद्य जानता है ? इसपर राजाने जो कुछ कहा उससे नागकुमारके कान प्रसन्न हो गये। उसने कहा हमारी पुत्री ही उर्वशो और मेनकाके तुल्य वीणा-वाद्य भली प्रकार जानती है। जब वह आलापिनी वोणापर आलाप छेड़ती है तब वह जैन मुनियोंके मनको भी चलायमान कर देती है। फिर राजा नन्दने अपनी सुन्दर कन्याको वह नररत्न दिखलाया, मानो कामदेवने अपनी धनुषको प्रत्यंचापर बाण चढ़ा दिया हो। अब कन्याका प्रिय-विरहसे मन दुःखने और मुख खूब सूखने लगा। कामकी ज्वालासे अंग तपने और उसके दर्शनसे वह रति-जलसे खूब भींगने लगी। चलने में उसको गति लड़खड़ाने लगो। अपने वल्लभके गुणोंका कयन बार-बार करने लगी तथा दूसरी किसी भी वार्तालापपर क्रुद्ध होने लगी। वह प्रिय सुन्दरी जैसे प्राणहीन हो गयी हो। इस प्रकार परवश होकर वह तन्त्री-वाद्यमें चूक गयी। फिर कामदेव नागकुमारने वीणापर दृष्टि डाली, जैसे मानो कामिनी गुणोंसे संजोई गयी हो। युवराजने तन्त्रीपर हाथ दिया और उससे जो वीणाका स्वर निकला वह मानो कामदेवका पुष्पबाण ही था। वह कर्णरन्ध्र में इस प्रकार प्रविष्ट हुआ कि उससे त्रिभुवनरति चक्कर खाकर गिर पड़ी // 9 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy