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________________ 77 हिन्दी अनुवाद मृगको और अपने मुंहसे चन्द्रको जीतनेवाली उस गणिकाने मनमें आनन्दित होते हुए कहाकान्यकुब्ज नामक नगरीमें विनयपाल नामका प्रधान राजा है। उसकी राजेश्वरी गृहिणी विनयमति है, और उसकी पुत्री निरुपम सुन्दरी शीलवतो। यह कन्या जब सिंहपुरके राजा विजयलक्ष्मीके सहायक हरिवर्मको विवाहमें देनेके लिए भेजी जा रही थी तब मार्ग में उसे रोककर तथा .. लाखों किंकरोंको युद्ध में मारकर मथुरा पुरीके राजाने उसका अपहरण कर लिया और उस भोली राजकुमारीको काँटोंकी बाड़ीसे घिरे हुए बन्दीगृहमें डाल दिया, जहाँपर वह महासती अभी तक रह रही है // 2 // 3. नागकुमारका उस बन्दीगृहको ओर गमन देवदत्ता कहती गयी कि जब तुम्हारे समान परोपकारी बलवान् मनुष्यको आते हुए वह बन्दीगृहमें पड़ी हुई राजकुमारी देख पाती है तब वह पुकार लगाती हुई थकती नहीं। किन्तु उसे छुड़ानेमें इन्द्र भी समर्थ नहीं है। देवदत्ताकी यह बात सुनकर नागकुमारने झूठ-मूठ उत्तर दिया अरे दुस्तर समुद्रके जलको कौन पार कर सकता है ? यमदूतोंसे समरमें कौन भिड़े और जो बलवान्के चंगुल में फंसा हो उसको कौन रक्षा करे ? और अब मुझे इस नगरीके देखनेसे भी क्या लाभ और उस दुष्ट राजासे क्या काम ? मैं तो अब नगरके बाहर सूर्यके प्रकाशको भी निरुद्ध करनेवाले अपने डेरेमें जाऊंगा। ऐसा कहकर वह मतिमान वहाँसे चला और सीधा उस कन्याके कारागारपर जा पहुँचा। कन्याने उस भूमण्डलके भूषण कुमारको देखा, जैसे मानो पूर्णिमाके दिन चन्द्रमाका उदय हुआ हो / कुमारीने पुकार लगायी-हे नरसिंह, हे विजयलक्ष्मीरूपी विलासिनीके मान्य, हे शरणागतोंके लिए वज्रके पिंजड़े, हे दुःखरूपी वृक्षको चूर-चूर करने वाले दिग्गज, आप कोई कुलीन महाप्रभु दिखाई देते हैं / अतएव आप मुझ बन्दिनीको इस बन्दीगृहसे छुड़ाइए। ___ इसपर कुमारने रक्षक किंकरोंसे कहा-हे जवानो, इस सुलोचनाको इस बन्दीगृहसे निकालो। यह हमारी बहन है / इसे जो कोई रोकेगा वह यदि इन्द्र भी हो तो भी समरांगणमें मरेगा। 4. संग्राम नागकुमारका इतना कहना था कि उसके किंकर जिनके हाथ निष्ठर थे, जो अपनी भृकुटीसे भयंकर दिखाई देते थे, बैरियोंका क्षय करनेवाले तथा अपने स्वामीका हित करनेवाले तथा शत्रुओंकी जयश्रीका हरण करनेवाले थे, वे अपने हाथोंमें भाले और मुद्गर लेकर दौड़ पड़े। दूसरी ओर दुर्वचन राजाके वे सुभट महायोद्धा अपने स्थानोंपर रक्षाके लिए जमकर खड़े हो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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