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________________ / -4. 12. 14] हिन्दी अनुवाद 11. अरिदमन बंदी बनाया गया तब सेना भयभीत होकर भाले हिलाती हुई सब दिशाओं में भाग उठी, जैसे कि देवगणोंको रुलानेवाले रावणके क्रुद्ध होनेपर देवोंकी सेनाकी दशा हुई थी। अरिदमन अभिमान सहित खड्ग निकालकर तथा मारो-मारो कहता हुआ दौड़ पड़ा। तब विजयश्रीका हरण करनेवाले गणिकासुन्दरीके प्रियपतिने अपना हाथ फैलाकर अरिदमनको ऐसा बाँध लिया जैसे दोषपूर्ण जीवोंको कर्म बाँध लेता है / अथवा जैसे रसवादी रस ( पारा )को स्थिर कर लेता है। अथवा जैसे कवि काव्य-कल्पनाको अपनी रचनामें बाँध लेता है / वह शत्रुओंकी वधुओंके हाथोंके कंगनोंका अपहरण करनेवाला कुमार गौड़ देशके राजाधिराज अरिदमनको बाँधकर घर ले गया और उसे अपने ससुरके सामने ले गया। वह बोला कि-किन्नरों द्वारा हाथोंमें वीणा लेकर जिनका नाम गाया जाता है ऐसे हे मामा, यह शत्रु आपकी सेवामें उपस्थित है। तब राजाने कुमारको सिरपर हाथ रखे हुए देखा और कहा-इस प्रकार अब मैं इस पृथ्वी मण्डलका धराधीश हुआ। जिसके घरमें तुम्हारे जैसा स्वजन रत्न होवे उससे सहस्र नेत्रवाला इन्द्र भी. आशंकित रहता है / इस प्रकार अब जगत्में मेरे लिए कोई प्रतिपक्षी मल्ल नहीं रहा। शत्रुके योद्धाओंके काल दूत तथा गजोंके लिए गंधहस्तीके समान तुम अकेले ही असहायके सहायक हो / फिर उस कुमारने अपने ज्येष्ठ भ्राताके दर्शन किये और उन्हें नमस्कार किया। अन्य एक दिन अपने हितका विचार कर ज्येष्ठ भ्राताने अपने छोटे भाईसे कहा-तुम अपनी गृहिणी सहित सुखपूर्वक यहाँ रहो जैसे हाथी हथिनी सहित रहता है।।११॥ 12. व्यालका कनकपुर गमन व नागकुमारका दर्शन हे नरसुन्दर ! मैं कनकपुर जाता हूँ जो घरोंसे जगमगा रहा है और जहाँ गायक गणों द्वारा वीर नागकुमारके गुणोंका मंगलमय संगीत गाया जा रहा है। - मैं वहां जाकर उस राजपुत्रको देखना चाहता हूँ जिसने अपने दान द्वारा दीनोंका अभाव कर . दिया है, जिसने अपना सुयश दिग्गजोंके कुम्भस्थलपर जा रखा है, जिसका वैरियोंका अन्त करने वाला खड्ग तथा भुवनव्यापीज्ञान जगत् भर में प्रधान सुना जाता है, जिसके सौभाग्यका वर्णन गणीजनों द्वारा तथा कामिनियोंके मानका अन्त करनेवाले सौन्दर्यका वर्णन सुन्दर कामिनियों द्वारा किया जाता है, जो रूपमें विधिकी एक अन्य ही कल्पना है और जो आजकल कामदेव कहलाता है। इस प्रकार पूछकर वह त्रिनेत्र व्याल सहसा वहाँसे चल पड़ा और पृथ्वीपर विचरण करता हुआ कनकपुरमें पहुंचा। उस कमलमुख कुमारको लोगोंने देखा। लोग उसकी ओर देखते बोलते और आश्चर्य करते थे / न तो यह कपाल धारण करता है और न त्रिशूल, न सर्प, न सर्परूपी ककन और न बैल, तो भी यह त्रिनेत्र रुद्र नगरमै अवतीर्ण हुआ है। उसी अवसरपर अपने हाथीको चरणके अंगुष्ठसे प्रेरित करता हुआ व अपने पिताको राजधानीमें प्रविष्ट होता हुआ पंचबाण ( कामदेव नागकुमार ) विषमनेत्र (त्रिनेत्र व्याल ) को दिखाई दिया। अन्य लोग तो मार्गसे हट गये किन्तु इस पथिकने अपना स्थान न छोड़ा। नागकुमार अपने मदोन्मत्त हार्थीको . लोगोंके मार्गसे हटाता ( बचाता) हआ रुद्र ( व्याल ) की ओर आगे बढ़ा / उस पथिकको देखकर नागकुमारको प्रसन्नता हुई और वहीं उन दोनोंको एक दृष्टि हो गयी। . हाता हआ P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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