________________ 67 -4. 10.17] हिन्दी-अनुवाद इसपर बड़े भाईने कहा-हे भ्राता, तुम दीर्घायु होओ। हे श्रेष्ठ वीर, में तुम्हें मुक्त करता हूँ। जाओ और रणांगण में सैकड़ों शत्रुओंपर विजय प्राप्त करो। तब लघु भ्राताने अपने बड़े भाईके चरणोंमें प्रणाम करके वहाँसे प्रस्थान किया और उसने अरिदमनके पास जाकर कहा-हे राजन्, कहिए तो आप रुष्ट क्यों हुए हैं ? मुझे राजा श्रोवर्मने दूत बनाकर आपके पास भेजा है। इसपर सिरमें वेदना उत्पन्न करनेवाले उस खल शत्रने कहा-मैं श्रीवर्मका समस्त धन ले लँगा / उसके चमकते हुए रत्न कुण्डलयुक्त सिरको भी काट डालूंगा और तूने जो मुझे प्रणाम भी नहीं किया अतएव तेरा सिर भो खण्डित करूंगा। तू मर / कौन दूत और कौन राजा ? मैं तुम सबको अपने यमके समान दण्ड प्रहारसे धराशायी करूंगा। ( इतना कहकर उसने अपने योद्धाओंको आज्ञा दी) अरे ! इसे निकाल बाहर करो और मारो, यह दुर्जन और ढोठ है। मीठा बोलता है किन्तु पापी और दुष्ट है / शत्रुके वचन सुनकर उस वीर पुरुषने अपने दाँतोंसे होठोंको काटा और ऐसा रुष्ट हुआ जैसे कंसके महायुद्धमें विष्णुदेव (कृष्ण ) रुष्ट हुए थे। उसने कहा-क्षुद्र मनुष्य के साथ प्रिय वचन बोलना उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे अग्निमें घृत डालना / जो खल पुरुष बढ़ जावे उसे दुर्वचनोंको बौछारसे तथा शस्त्रोंके प्रहारसे शमन करना चाहिए। इतना कहकर उसने वीरतापूर्वक अपनी भुजाओंके माहात्म्यसे एक हाथी बाँधनेका खम्भा उखाड़ लिया / / 9 // . 10. युद्ध वह वीर परुष संग्राममें अप्सराओंको संतुष्ट करता हुआ ऐसा दिखाई दिया जैसे मानो प्रलयकालकी अग्नि प्रज्वलित हो उठी हो / अथवा मानो कोई सिंह अपने केश समूहको हिला रहा हो, अथवा मानो प्रलयके दिन शनिश्चरका उदय हआ हो। वह महाभट अत्यन्त कुपित होकर हाथमें उस हस्ती-स्तम्भको लेकर दौड़ पड़ा। उसके पैरोंकी पटकसे धरातल चलायमान हो रहा था, और वह अपनी भुजाओंसे मदोन्मत्त हाथियोंको तौल रहा था। उसने शत्रुको सेनासे ऐसा दारुण युद्ध किया कि समरांगण घावोंसे बहते हुए रक्तसे लाल हो गया। उसकी मारसे दलित होकर रथ टूट फूट गये। सघन हाथियोंके समूह पीठकी हड्डियोंके मर्दनसे बैठ गये। अच्छे-अच्छे योद्धाओंको पंक्तियाँ टूट गयों और उनमें महान् कोलाहल मच गया। गृद्धों द्वारा नोचे जानेवाले मृतकोंके मस्तकोंकी कलंगियाँ हिलने लगीं। रक्तसे मदोन्मत्त होकर बेताल नाचने लगे, मृदंग और भेरियां टूट फूटकर इधर उधर जा पड़ीं। जो दुर्दम थे वे भी शस्त्रोंके भारी प्रहारोंसे वशमें हो गये / चर्बीरूपी जलसे इतनी कीचड़ मच गयो कि गमन करना कठिन हो गया। नाना प्रकारके यानों व पालकियोंका भंजन हो गया। देवांगनाओंका खूब मनोरंजन हुआ। पक्षीगण दशों दिशाओंमें एकत्र होकर घूमने लगे, तुरंग चूर-चूर होकर चूर्ण बन गये / योद्धाओंके जो आभरण : पृथ्वीपर गिर गये थे उनके रत्नोंकी चमक फैलने लगी / आकाश मण्डलमें देव और असुर आकर एकत्र हो गये। श्वेत छत्र और चमर पृथ्वीपर बिखर गये। मृतकोंके धड़ों व मुण्डोंपर भेरुंड मँडराने लगे। इस प्रकार वह संग्राम ऐसा. भयंकर हुआ जिससे शत्रुओंको मानिनी स्त्रियोंके हृदय व्याकुल हो उठे। ऊंची बँधी हुई फहराती ध्वजाओंका छेदन हो गया। राक्षसियोंके मन आनन्दसे भर गये तथा असाधारण शूरवीरोंका सत्यानाश हो गया। हस्ती-स्तम्भको हाथमें लिये हुए वह व्यालका सहोदर ऐसे प्रहार करनेमें और मारनेमें समर्थ था जैसे मानो गदारूपी वज्रको तौलकर योद्धाओंका चूडामणि भीम कौरवोंके सैन्यमें भ्रमण कर रहा हो // 10 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust