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________________ -4. 9.2] हिन्दी अनुवाद लिया था उस रतिके समान कन्याका छोटेके साथ विवाह कर दिया। विवाह हो जानेपर कुछ दिनोंके पश्चात् पाटलीपुत्रपर शत्रुका आक्रमण हुआ। भीषण गजेन्द्रोंकी गर्जना, प्रतिपक्षियोंके / कटकका मर्दन करनेवाले व धवल ध्वजाएँ उड़ाते हुए रथों, हिनहिनाते हुए घोड़ोंकी पंक्तियों तथा 'मारो मारो' कहते हुए, दुस्सह योद्धाओं सहित दुष्ट शत्रु अरिदमन जो बड़ा बलशाली था, गौड़ देशका राजा था और जो विजयके लिए आतुर था, उसने कुसुमपुरको घेर लिया व उसे यमके मुखमें डाल दिया एवं योद्धाओंके भालोंसे विघटित कर दिया तथा हर (शिव ) व हिमके कणोंके समान कान्तिवाले हाथियोंके दाँतोंसे पेलकर नगरका कोट गिरा दिया // 7 // 8. राजा व राजकुमारीका भय तथा उसके नये पति द्वारा संरक्षण इसपर राजा श्रीवर्मने भयभीत होकर अपने शत्रुको स्वणं समर्पित किया तथा छल-कपट छोड़कर दोन वचन बोले-आप लौट जाइए, नगरको जलाइए मत / किन्तु राजा श्रीवर्मके ये शब्द शत्रुके - मनमें स्थिर नहीं हुए। खल पुरुष प्रिय वाणोको नहीं सुनता / वह बोला यदि तुम देवोंकी शरणमें भी चले जाओ तो भी तुझे मारूंगा, तेरी अब मृत्यु आ चुकी है। ऐसे वचन कदली-कन्द सदृश सुकुमार. बालिकाने सुन लिये और वह जब अपने पिताको मृत्युसे आशंकित होकर रो रही थी तभी उसके पतिका भ्राता वहां आ पहुँचा / उसने कहा-हे भद्रे, तू रोती क्यों है ? तेरे हृदयमें जो दुःख हो उसे कह / इसपर जिसका मुखचन्द्र दुःखसे मलिन हो रहा था और जो उन्मनी और दुर्मन हो रही थी वह राजकुमारी बोली-जहां तुरंग घूम रहे हैं उस युद्ध में शत्रु द्वारा मेरा पिता आजकलमें मारा जानेवाला है। वह ( शत्रु ) न प्रिय वचनोंसे और न दानसे उपशान्त होता है। इसपर वह शत्रुओंके / यमराज वीर कुपित हो उठा। उसो अवसरपर तत्काल उसके भाईने आकर अपने बड़े भ्रातासे पूछा-आप क्रुद्ध क्यों दिखाई देते हैं ? आपके नेत्र लाल हो रहे हैं। आप ओष्ठसे अपना अधर काट रहे हैं, तथा आपके ओष्ठपुट भी फड़क रहे हैं। आप ऐसे विकराल दिखाई दे रहे हैं जैसे वह सिंह जिसको गर्दनके केश ऊपरको हिल रहे हैं। यह सुनकर अग्रजने अपने अनुजसे कहा-हे भाई, क्या तुमने सुना नहीं कि अपने ससुरके ऊपर अति प्रचण्ड वैरिसैन्य चढ़कर आया है ? और क्या तुम देख नहीं रहे हो कि तुम्हारी पत्नी स्वजनोंकी मृत्युके भयको सहन न करते. हुए रो रही है ? और उसके कमल सदृश नेत्र ओसके जल समान आँसुओंसे भीग रहे हैं ? अतः मैं जाकर युद्ध करूँगा, शत्रुके भटोंकी लक्ष्मीको खण्डित करूँगा और उसकी स्त्रियोंको विधवा करूंगा // 8 // 9. शान्तिदौत्य तथा शत्रुका अहंकार अपने ज्येष्ठ भ्राताके ऐसे वचन सुनकर उस वीर लघु भ्राताने कहा-आपकी विजयका यश सुन्दर चन्द्रमाके समान मधुर रूपसे सर्वत्र फैला हुआ है। मेरे आपके किंकरके घर में होते हुए आपको शस्त्र धारण करनेकी क्या आवश्यकता है ? P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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