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________________ 53 हिन्दी अनुवाद किया, जैसे त्रिभुवननाथ शिव अथवा जिनेन्द्रने अनंग अर्थात् कामदेवका दमन किया था। अथवा जसे कोई पुरुष व्यसनोंमें गये मनको दमन करे। वह जो ग्रीष्मकालीन सूर्यके समान दुष्प्रेक्ष्य था उस घोड़ेको अश्वशास्त्रके आचार्यों द्वारा प्रशंसित अनेक शैलियोंसे सर्वांग वशीभूत करके राजकुमार उसे राजाके सम्मुख ले आया। . उस श्रेष्ठ तुरंगके नागकुमार द्वारा दमन किये जानेपर श्रीधर मानो वज्रसे आहत हुआ और बोला जहाँ मेरा ऐसा वैरी ( दायाद, उत्तराधिकारी ) रहता है वहाँ मेरे लिए राज्य करना दुष्कर है // 14 // 15. नागकुमारका कारावास व दूसरा साहस इसे किस दिन मारू, जीत लूँ अथवा संग्राममें पकड़ लें, ऐसी चिन्ता करते हुए श्रीधरने अपने महल में योद्धाओंका संग्रह किया। यह समाचार पाकर राजाका हृदय छिन्न-भिन्न हो गया। वह सोचने लगा लक्ष्मीके लम्पटोंके करुणा नहीं होती / कृपाणसे छेदकर टुकड़े-टुकड़े करके प्रथम पुत्र द्वारा छोटा पुत्र मारा जाये ? आगे होनेवाले कार्यको जो समझ-बूझ लेता है वह पश्चात्तापसे नहीं जल पाता / इस प्रकार चिन्तन कर राजाने एक अलग नगर बनवाया और उसे नागकुमारको दे दिया। जब नागकुमार वहाँ निवास कर रहे थे तब एक अन्य आश्चर्यजनक घटना घटी। उस जनप्रचुर कनकपुरमें कैलाससे एक ऐसा हाथी आ पहुँचा जो गांव-गांवके समस्त प्राणियोंको उड़ा देता था। नगरों और नगरवासियोंका अपने दांतोंसे घात कर डालता था। जो संवाहकोंको बाधा उत्पन्न करता था। पुरमानव और पुरके कोटोंको चूर-चूर कर देता था / कपाटों तथा पटबन्धनोंको विनष्ट कर देता था। बहतसे मण्डपों तथा चबूतरोंको तोड़-फोड़ डालता था। घासफूस खानेवाले पशुओंके खेटकोंको नष्ट कर डालता था। इस प्रकार समस्त देशमें विपत्ति उत्पन्न करता हुआ तथा तोड़-फोड़की लीला और क्रीड़ा दिखलाता हुआ वह जंगली हाथी आया / / जैसी मेरे दाँतोंकी सफेदी है वैसी इनकी क्यों है ? ऐसा सोचकर मानो वह हाथी मन्दिरोंको विनष्ट करता हुआ अपनी दुष्टता दिखाने लगा // 15 // 16. कनकपुरमें हाथोकी विनाश लीला वह दुर्धर मदोन्मत्त हाथी सैकड़ों पत्थरोंसे ताड़ित होकर भी शंकित नहीं होता था तथा न चाहनेवाले मनुष्योंपर भी आक्रमण कर उनपर रदनकोटि ( दाँतों) के अग्रभागका प्रहार करता था। मानो उन्हें रत्नकोटि ( करोड़ों रत्न ) दे रहा हो। उस अवसरपर आरेके समान चमकते हुए दण्डको हाथमें लेकर स्वयं श्रीधर दौड़ा। वह ध्वजाओं, .घोड़ों, हाथियों व रथों तथा किंकरोंसे सुसज्जित था। उसकी सेनाने हाथीको चारों दिशाओंसे घेर लिया, जैसे मानो मन्दर पर्वत तारागणसे घिरा हो। इस घटनाने नरेन्द्रको भयका ज्वर ला दिया। उस हाथीके मूसल सदश दाँतोंसे आहत होकर श्रीधरके गज विघटित हो गय और लारके पिण्डमें लोटने लगे। तुरंग सूड़की मारसे जर्जर हो उठे। सुभटोंके समूह परक P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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