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________________ -3. 14.9] हिन्दी अनुवाद 13. पिता पुत्रको द्यूतक्रीडा राजाने माण्डलिकोंसे पूछा-तुम लोगोंने अपने-अपने आभूषण क्यों नहीं धारण किये ? इसपर उन राजाओंने राजाधिराजको नागकुमारका विलास कह सुनाया। __ हे देव, उसकी कौड़ी खूब चमकती थी और हमारी आते-आते ठीक स्थान पर रुकतो ही न थी / इस प्रकार पुरकी मानिनी स्त्रियोंके मनको हरण करनेवाले उस नये जुआड़ी श्रीवर्मके दोहित्रने जाकर हमारी कानकी बाली मात्र समस्त धनको जीत लिया। यह सुनकर राजा अवाक् रह गया और अपने करकमलोंसे मुंह ढककर बैठ गया। फिर किसी अन्य दिन उस राजाने अपने पुत्रको प्रसन्नतापूर्वक बुलवाया और कहा-हे पुत्र, तू द्यूत भली प्रकार जानता है और तू नित्य ही विजयश्री प्राप्त करता है / यह अक्षयूत देवों और असुरोंका मनोरथ कार्य है और लोगोंके मनको प्यारा है। अतः हे सुलक्षण, आज तुम मेरे साथ खेलो। सारियाँ लगाओ और पासा उठा लो / तब कुमारने वैसा ही किया और क्षणमात्र विजय प्राप्त की। उसने अपने पिता का समस्त धन जीत लिया। फिर उनका धन उन्हें लौटा दिया। भला कौन ऐसी प्रतिज्ञाका पालन करता है ? किन्तु अपनी माताका जो समस्त धन नरेन्द्रने अपहरण कर ले लिया था उसे अपने कुलरूपी आकाशके चन्द्र उस सुपुत्रने छुड़वा लिया और उसे माताके घर पठवा दिया जिससे उसकी कान्ति और कीर्ति बढ़ गयो / महिलाओं, जड़पुरुषों एवं हीन तथा दीनजनोंके लिए धन दुर्लभ है, किन्तु वह उत्तम पुरुषोंके लिए सुलभ है / गुणवान् मनुष्य ही भला होता है // 13 // 14. नागकुमारको वीरता तथा श्रीधरका विद्वेष किसी अन्य दिन राजाने नागकुमारको ऐसा तुरंग दिखलाया जो खूब हिनहिनाता और हिंसक था। जैसे मानो कोई दुष्ट, अनिष्ट, अत्यन्त निष्ठुर-मुख, कटु वचनभाषी दुर्जन हो। . वह अश्व दुर्जनके समान वक्रानन और दुःसह था। कोड़ा लगानेसे भी चलता नहीं था, जैसे खोटा सोना कसौटीपर नहीं चढ़ता। वह लगाम ग्रहण नहीं करता था, जैसे पतित ब्राह्मण कुश लेकर अंजलि नहीं चढ़ाता। वह लोगोंको त्रास देता था, जैसे सूर्यका पुत्र कर्ण नर अर्थात् अर्जुनको त्रासदायक था अथवा जसे रविपुत्र शनि लोगोंको त्रासजनक होता है, अथवा जैसे सूर्य पुत्र यम लोगोंको शान्त अर्थात् निर्जीव कर देता है। वह चनोंकी लाँकका ढेर खा जाता था। अतः वह लक्ष्मणके हाथके समान था जो लंकेश रावणको खा गया था। वह बड़ा वेगवान् था, अतः यवों के ऐसे खेतके समान था, जिसमें खूब जो पैदा होते हों। वह अपने दिव्य तथा ऊपर : उठाये हुए क्षुब्ध खुरोंसे अति चंचल था। वह उरस्थलमें विस्तीर्ण और पिछले भागमें विशेष विस्तारयुक्त अर्थात् स्थूल था। वह परावर्तन करता था, सिर फोड़ देता था, कमर तोड़ देता था तथा हड्डियाँ मोड़ देता था। जो स्थिर आसन जमाने वाले थे उन्हें भी विघटित कर सन्तापदायक था, एवं असवारोंके समूहको भयभीत करनेवाला था। ऐसे उस घोडेका बालक कुमारने दमन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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