________________ --3. 7. 12 ] . हिन्दी अनुवाद . 6. नागकुमार द्वारा परीक्षा तथा दोनों कुमारियोंका प्रेमार्जन ___ धराधीश जयन्धरने राजकुमारसे कहा-इन जगत् सुन्दरियोंमें कौन जेठी है और कौन छोटो है ? हे कामदेव, शीघ्र बतलाओ इनमें कौन मनोहरो और कौन किन्नरी है ? __ मदनने कहा जो अपनी दृष्टिसे (लोगोंके मनको) जीतती ( लज्जित करती) है वह छोटो तथा दूसरी किन्नरी जेठी है / फिर स्वर और जातिके भेदोंसे संयुक्त आलापनी नामक वीणाका. वाद्य प्रारम्भ हुआ। उन दोनों बहनोंमें उसने स्थूलपयोधरी मनोहरीका वाद्य अधिक सुन्दर बतलाया। दोनोंने प्रत्यक्ष मदनका अवलोकन किया और उसे अपने हृदयमें धारण किया। मदनके बाणोंसे विद्ध होकर उन दोनोंके प्राण किसी-किसी प्रकार निकले नहीं / गन्धिनी अपनी उन कन्याओंको तोरणोंकी छटा तथा रंगावलीसे रमणीक अपने घर लौटा लायो / किन्तु वहां उनका जलसे सिंचन धूम्ररूपी श्वासको बढ़ानेवाला तथा चन्दन विरहरूपी अग्निका ईंधन सिद्ध हुआ। उन्हें न आहार भाता था और न हार / कमल कमलबन्धु ( सूर्य ) के समान सन्ताप देने लगा। चन्द्रकी चाँदनी ऐसी लगती थी मानो अग्निको ज्वाला आ लगी हो / जलसे गीला किया गया वस्त्र ऐसे दूर कर दिया गया जैसे मानो वह जलन पैदा करता हो। चंवरोंकी वायु ऐसी लगती थो मानो बातको पीड़ा लग उठी हो। वे अपने प्रियके उरस्थलके आलिंगनकी मांग करने लगीं। कोकिलका स्वर उनके लिए कामदेवका बाण तथा आम्रमंजरी जीवनकी आशाका अपहरण करनेवाली सिद्ध हुई। उन्हें वैभवका कोई एक भी विनोद रुचिकर नहीं हुआ। दोनों तरुणियोंने अपनी जननीसे कहा-हे अम्ब, चरणकमलों पर पड़कर तथा अभंग स्नेह दिखलाकर उन नागकुमार कामदेवको यहाँ ले आओ॥६॥ 7. पिताको आज्ञासे नागकुमार द्वारा उन दोनों नर्तकियोंका परिणय हे सुवर्ण और भोजनको देनेवाली बालमृगलोचनी माता, बिना प्रेमीके जीवन कहाँ ? शीघ्र जाकर उस सुभगको ले आइए। . , ....... उन दोनों युवतियोंकी बात सुनकर वह विलासिनी पंचसुगन्धिनी अपने पैरोंकी पैजनियोंकी मधुर ध्वनि करती हुई चली, जैसे हंसिनी चल रही हो। वह राजमहल में पहुंची जैसे रागावलि ही हो / वह राजाके आगे हाथ जोड़कर बोली-हे नरश्रेष्ठ, हे स्वामी, आजकलमें ही मेरी दोनों कन्याएँ मर जायेंगी। तुम्हारे लघु पुत्रके वियोगसे आहत होकर वे जो नहीं सकतों, यों ही मर जायेंगी, यह निश्चित है क्योंकि उनके हृदयमें कामदेव बस गये हैं। इसपर राजाने कुमारको बुलवाया और कहा-हे पुत्र, कुलको क्या देखना है, अकुलीन भी स्त्रीरत्नको ले लेनेमें कोई दोष नहीं। ये सौम्य और उत्तम वेश्याएं दिखती हैं जो भूपतियोंको भी पैरोंसे ठुकरा सकती हैं / शुद्धचित्त वेश्या भी कुलपुत्री ही है। अतः हे सुन्दर, उत्तर-प्रत्युत्तर मत करो। तुम जिनेन्द्रके चरणकमलोंके मधुकर दिखाई देते हो, तुम करुणावान् हो। अतः भयभीत मत होओ। इन दो कन्याओंको मरणसे बचा लो। हे तरुण, तुम उन्हें प्रेमको तिरछी आंखोंसे देखो। तब कुमारने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust