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________________ -3. 5. 15 ] हिन्दी अनुवाद 41 बुद्धिमान्, गुरु व देवका भक्त, सौम्य, सरलचित्त, दानो, उदार एवं ज्ञानी पुरुषोत्तम बन गया। वह अति श्लाघ्य (प्रशंसनीय.) पंचेन्द्रियोंको जीतनेवाला, स्थिर स्मृतिवान् तथा विद्वानों द्वारा वन्दनीय हुआ। वह अपने वर्तलाकार यानी प्रकोष्ठों, उभरे हुए चरणपृष्ठ और अंगूठोंसे शोभायमान हुआ। उन्नत एवं विस्तीर्ण भालपट्ट, उन्नत स्कन्धों तथा प्रबल बलसे शोभित हुआ। उसके तालु, जिह्वादल, नेत्र तथा हथेलियाँ, अधर व नखमण्डल ताम्रवर्ण थे। उसके दाँतोंकी पंक्ति चिकनी तथा नखतल श्वेत वर्ण थे। उसके रोमकूपोंका एक-एक रोम हेमवर्ण था तथा लिंग, कण्ठ व जंघा ह्रस्वाकार थे। उसको नाभि, कर्ण और घोष गम्भोर थे। उसका वक्षस्थल विशाल और कटिभाग पतला था। पेट पतला और मध्य भाग संकोण, भुजाएँ दीर्घ तथा कान सन्तुलित आकार के थे / वह अपने नाक द्वारा चम्पक फूलको भी जोतता था तथा उसके बाल नीले, चिकने और धुंघराले थे। ___लोग उसके जिन-जिन अंगोंको देखते थे वही-वही सुलक्षणोंसे भरे दिखाई देते थे। कवि क्या वर्णन करें जगत्में स्वयं कामदेवने हो तो अवतार लिया था // 4 // 5. पंचसुगन्धिनी नामक नर्तकोंका आगमन वह कुमार क्या था मानो लावण्यका पुंज ही था। स्वयं चन्द्रमा था। गुण रत्नोंसे रचित था मानो उस नगरश्रेष्ठको लक्ष्मीदेवीने स्वर्गके विलासयुक्त उत्तम पुरुषके शरीरका रूप लिया हो। जब नागकुमार समस्त सुखोंके भाजन अपने पिताके घर और कभी उस नागके घर रहते . थे तभी अनेक गुणोंको निधान प्रेमल नर्तकी जिसका पंचसुगन्धिनी नाम प्रसिद्ध था, अपने तेजरूपी जलसे सिंचित दो सखियों सहित वहाँ आयो। वह हंसके छौने तथा गजके समान लीलायुक्त गमनशील कामिनी आकर राजद्वारपर खड़ी हुई और कहने लगी कि इस नगरमें कोई पण्डित नहीं है, कोई भी सरस्वतीसे मण्डित नहीं है। न कोई इन दोनों युवतियोंमें कौन बड़ी और कौन छोटी है यह देख पाता और न कोई उनके वीणा वाद्यको परीक्षा कर पाता। तब द्वारपाल हंसकर बोला-अरे यह कुलगृह नागकुमारसे विभूषित है जो सुभग, सरस, शूर, सुललित बाहु, मन्दरके समान धीर तथा पूर्ण चन्द्रमाके समान मुखसे युक्त हैं / वे वीणा वाद्यको कुशललाको तथा तुम्हारो इन पुत्रियोंको जेठाई ओर छोटाईको पहचान सकते हैं। इसपर उस सुन्दरीने राजप्रासादमें प्रवेश किया, मानों भ्रमरोने नये कमलमें प्रवेश किया हो। उसने अपनी उन विनम्र सिर तथा विनयशालिनी पुत्रियों सहित राजाको प्रणाम किया। . वृत्तान्त बतलाया गया और कामदेवके अवतार नागकुमार बलवाये गये। उनसे राजाने कहा तुम कुशल ज्ञानी हो और पण्डितोंकी सभामें तुम्हारी प्रशंसा की जाती है // 5 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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