________________ -3. 4.5 ] हिन्दी अनुवाद 39 लगता है / अधर्म वह है जहाँ दुष्टका परिपालन और साधुका बध किया जाये। पापीको राजलक्ष्मी नहीं मिलती और अधर्मसे राजा नरकको जाता है। राजाको चाहिए कि वह घोर अनर्थको होनेसे बचावे और अर्थका संचय करे। धर्मके बिना अर्थ सिद्ध नहीं होता। धर्मरहित संचय अशक्य भी होता है और अनुचित भो। ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी अन्य कार्यका नाश हो। कुल और मतिसे विहीन पुरुषको मन्त्री नहीं बनाना चाहिए / . कामातुर और रसीले मनुष्य अन्तःपुरकी स्त्रियोंको देखभालके योग्य नहीं होते तथा रणमें कायर मनुष्य तीक्ष्ण पक्षको रक्षाके योग्य नहीं होते / / 2 / / 3. राजनीतिको शिक्षा चालू जो राजा धन सम्बन्धी कार्यमें धनके लोभी पुरुषको नियुक्त करता है वह अग्निमें ईंधन डालता है; हे सुभग, वह व्यक्ति मांसके रक्षणके लिए वहां बिल्लीको बाँधकर रखता है। दुष्ट भृत्योंका पोषण आपत्तियोंकी खानि है जिससे नृप अधिक विपत्तिमें पड़ता है। नाना गुणोंके गौरवका विचार करते रहना चाहिए। गुणोंके अनुरागसे प्रजाजनको प्रसन्नता होती है। जो गुणोंका भण्डार हो ऐसे पुरुषको परीक्षा कर नियुक्त करना चाहिए। जो कोई कार्यमें धुरन्धर पाया जाये उसीको कार्य-भार सौंपना चाहिए। दीर्घ कालतक साथ रहनेसे ही शोलकी परीक्षा हो सकती है / गुणी पुरुष व्यवहारके द्वारा ही मनुष्यकी सचाई पहचान सकता है। वार्तालापके द्वारा ही मनुष्यकी बुद्धि जानी जा सकती है तथा युद्ध में ही धैर्यकी पहचान होती है। दूसरेको सौंपे गये कार्य तथा अपने कार्य पर भी दृष्टि रखनी चाहिए तथा विभागाध्यक्षको भी दूसरोंके द्वारा परीक्षा करनी चाहिए। कर्मशुद्धि, निग्रह व अनुग्रह, प्रतिनिधियोंकी नियुक्ति, विपत्तिका प्रतिकार व बुद्धिमान् पुरुषोंका संग्रह यथाविधि करते रहना चाहिए। विघ्नके उत्पन्न होते ही उसका विनाश करना उचित है। परिजनोंको दानसे सन्तुष्ट करना चाहिए / तीन शक्तियों द्वारा अपने कार्य व स्वत्वका संरक्षण तथा अन्य विशेष हितकारी कार्य करना चाहिए। चपलता, अकालचारित्र्य तथा कामदृष्टि इनका त्याग करना चाहिए। हे नरश्रेष्ठ, कुपुरुषोंकी संगतिको छोड़ो क्योंकि उससे भयंकर व्यसनोंका आगमन होता है / हर्ष, मान, भय, काम और क्रोध इनपर विजय करो। लोभ उत्पन्न होते ही उसका विनाश करो। शत्रु, मित्र और मध्यस्थ इनका विवेक करो तथा हे कामदेव, निम्नलिखित व्यसनोंका विच्छेद करो। मद्य, विलासिनी स्त्रियाँ, आखेट, द्यूतानुराग, धनका अन्यायसे अर्जन, कठोर वचन तथा दण्डकी कठोरता, इनका त्याग करो // 3 // 4. नागकुमारका यौवन इस प्रकार नागेन्द्रके मुखसे निकले हुए शास्त्रको सुनकर वह हाथीके सूंड सदृश दोघं और दृढ़ बाहुशाली राजपुत्र विद्वत् शिरोमणि बन गया। वह पुरुषसिंह नवयौवनको प्राप्त हुआ, मानो इन्द्र स्वर्गसे आ पड़ा हो। वह व्यसनहीन, स्वच्छ, क्रोधरहित, शूरवीर, महाबलशाली, उचित कार्यशील, दूरदर्शी, दीर्घसूत्रतारहित, P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust