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________________ -2. 11. 12 ] हिन्दी-अदुवाद 10. बालक द्वारा वज्र कपाट खोले जानेको आश्चर्यजनक घटना बालक चन्द्रमाके समान बढ़ने लगा और सुन्दर कलाओंके समूहको ग्रहण करने में एकाग्र रूपसे अनुरक्त हो गया। एक दिन उसके माता-पिता दुष्कर्मोंको हरण करनेवाले मणि कलशोंके समूह तथा दर्पण अपने हाथों में लेकर घण्टा, चामर और ध्वजाओं सहित जिनमन्दिरको गये। किन्तु वहांका वज्रकपाट सघन रूपसे बन्द था। उसे देवने ऐसा किया था, अतः उसे कौन खोले? तब राजाके मनमें दुःख उत्पन्न हुआ कि मेरो भावना थी कि मैं यहाँ आकर पत्नी सहित धर्म करूंगा। किन्तु मेरा आगमन निरर्थक हुआ। यहां आकर भी जिन भगवान्के मुखके दर्शन न हो सके / जिन्होंने यह सुख दिया उन जिनपतिका मुख, प्रभुका मुख, प्रिय स्वामीका मुख हमें नहीं दिख सका / राजा इस लोक और परलोक गतिका विचार करने लगा और वह भस्त्रा (धौंकनी ) के समान साँसें भरने लगा। इसी बीच उसे ऋषिके वचनका प्रकरण याद आ गया और उसका चिन्तन कर उसने बालकको ऊपर उठाया। जब पिताने बालकके पैरसे कपाटको धक्का दिया तो सहसा वह खुल गया। उन्होंने मन्दिरमें प्रवेश कर जिनेन्द्र के मुखके दर्शन किये, जिसमें न तो दांतोंसे ओष्ठ चबाने अथवा भौहें चढ़ाने रूपी क्रोधका भाव था और न कामदेवसे पराजित हुए शृंगारका भाव / उनके नेत्र समता भावसे स्थित थे और वह काम, क्रोध और भयसे रहित थे॥१०॥ 11. जिनेन्द्र स्तुति राजा उन नागेन्द्र और देवेन्द्रों द्वारा वन्दनीय जिनेन्द्रकी स्तुति करने लगा हे देवोंके देव, आप अनिन्द्य हैं / आपके पंचमहाकल्याणक हुए हैं / आप ज्ञानरूप हैं / आपपर सदैव चमरोंके समूह डुलते रहते हैं / आप प्रभुओंके भी प्रभु हैं और उच्च सिंहासनपर विराजमान हैं। आप सब जीवोंको उनके समझने योग्य भाषाओं में पदार्थोंका उपदेश देते हैं। आप प्रशंसनीय हैं। आपके ऊपर देवताओं द्वारा पुष्प-वृष्टि की जा रही है जिसको सुगन्ध उड़ रही है एवं दुन्दुभी की ध्वनिसे समस्त भुवन भर रहा है / आपके ऊपर श्वेत छत्र शोभायमान है। आप दोष रहित हैं / अशोक वृक्षपर बैठे हुए पक्षिराज आपका जयघोष कर रहे हैं। आपका अद्वितीय भामण्डल चमचमा रहा है। आपकी अद्भुत शोभा है। आप परिग्रह रहित, संज्ञा रहित, लोभ रहित और मोह रहित हैं। इधर राजा जिनेन्द्रको स्तुति कर रहे थे, तभी उधर मन्दिरके बाहर कुमारने उस वापाको देखा जिसमें असाधारण जल भरा था, जिसके तटपर देवोको स्थापना थी / उसमें नोचेतक जानेके लिए चमचमाते हुए चिकने मणियोंकी सीढ़ियां बनी थों। उसमें कमल फूले हुए थे और वह भौंरोंके गुंजारसे रमणीक थी / वह ऐसी मनोहर थो मानो कामदेवकी क्रीडास्थली ही हो। उसमें अपने फूत्कारोंसे जलसीकर छोड़ते हुए नाग क्रीडा कर रहे थे। उसका प्राकार मोटे सुवर्णसे बना था जिसकी चमकसे अन्धकार दूर हो रहा था। वहां देवोंके अनेक प्रकारके आलाप और गीत सुनाई पड़ रहे थे / ऐसी वह वापी अनेक प्रकारसे शोभायमान थी। वहां उत्कण्ठासे उद्वेलित होकर तथा रतिभावसे प्रेरित होकर हंस मृदुल ध्वनि कर रहा था। तथा पानी में रहनेवाली हंसिनीको अपनी चोंचसे कमलनाल दे रहा था॥११॥.. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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