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________________ 2. 9. 12] हिन्दी अनुवाद उन मलरहित मुनिवरने राजा-रानीको उस स्वप्नका फल घोषित किया कि तुम दोनोंके मानिनी स्त्रियोंका हृदयहारी कामदेव पुत्र रूपसे उत्पन्न होगा // 7 // 8. रानीका गर्भ व पुत्र-जन्म मुनिने आगे कहा कि उस पत्रके चरणके अंगूठेके स्पर्श मात्रसे यहाँके सहस्रकूट जिनालयका . वज्र कपाट अपने सघन सन्धिबन्धनसे च्युत होकर एक क्षणमात्रमें खुल जायेगा। वह नरश्रेष्ठ वापीमें गिरेगा, किन्तु उसके रेंगते जाते हाथ पसारते ही उसको आपत्तिका हरण करनेवाला एक दिव्य नाग उसे अपने सिरपर धारण कर लेगा और वह नागके फनकी उन मणियोंसे क्रीड़ा करेगा जो अपने तेजसे बिजलीको भी मात कर देती है। यह सुनकर राजा-रानी हर्षरूपी जल समहसे सिंचित और रोमांचित हो उठे। उन्होंने अपने मन में पुत्रको उत्पन्न हुआ जैसा मान लिया।" सब लोगोंमें आनन्द बढ़ गया। मुनिके वचनानुसार वे दोनों नेत्रोंको आनन्ददायी अपने प्रासादमें आये। अतिपण्यवान् एवं पुण्यचरित जोव माताके छोटे उदरमें अवतरित हुआ, जिस प्रकार सीपमें मोतीका संक्रमण होता है उसो प्रकार बाधा रहित रूपसे वह पृथ्वीदेवोके उदरमें आया। देवीका मुख-कमल पोला दिखाई देने लगा, मानो वह पुत्रके यशके प्रसारसे धवल हो गया हो। अपने नीचे गिरनेके भयसे दुःखी होकर उसके स्तनोंके मुख दुर्जनोंके मुखोंके समान काले पड़ गये। जिस प्रकार पुरा कवि ( वाल्मीकि ) को बुद्धि में ( प्रथम बार ) काव्यार्थ उत्पन्न हुआ, तथा देवकीके यशस्वी दामोदर उत्पन्न हुए, शिवदेवोके पार्श्व जिनेन्द्र हुए, एवं क्षमासे गुण उत्पन्न होता है, उसी प्रकार पृथ्वो महादेवोके बालक उत्पन्न हुआ // 8 // 9. राजकुमारका जन्मोत्सव उस कामदेवके अवतार पुत्रका क्या वर्णन करूं? उसका जन्म शुभग्रहोंको दष्टिमें हुआ और वह अनेक सामुद्रिक व्यंजनों व लक्षणोंसे संयुक्त था, मानो अहिंसाने श्रेष्ठ धर्मको उत्पन्न किया हो। उसके जन्मके समय दशों दिशाओंके मुख निर्मल हो गये, वन फल-फूल उठे, प्रत्येक उपवन में वसन्तकाल प्रकट हआ, जन-जनमें सन्तोष बढ़ा, नर-नरमें नाटक-रसका प्रसार हआ तथा घर-घरमें जयका नगाड़ा बज उठा / ऋषियोंका हृदय भी रागसे रंजित हो उठा तथा सम्पूर्ण नगरमें सौभाग्य ( सुख-सौन्दर्य ) पुंजोभूत हो उठा। कोकिल समूहका कलकल सब ओर ध्वनित होने लगा तथा विरहो जन विरहको ज्वालासे जल उठे। भौंरोंको पंक्ति ऐसी मधुर रुनझुन ध्वनि करने लगी मानो कामदेवके धनुषको प्रत्यंचा झनझना रही हो। मंगलमय धवल वस्त्रोंसे सुसज्जित विलासिनी स्त्रियोंने सामूहिक रूपसे विलासमय नृत्य किया। दीनजन दानके द्वारा आनन्दित किये गये, तथा बन्दीजन बन्दीगृहसे मुक्त कर दिये गये। उस बालकके मुख-कमल में सरस्वती विराजमान थी और युगल भजाओंमें विजयलक्ष्मी। वह अजेय और महान् था, उसके उरस्थल में लक्ष्मीने अवतार लिया था तथा शीघ्र ही उसकी कोति दिगन्तमें भ्रमण करने लगी // 9 // .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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