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________________ 2.7.10] हिन्दी अनुवाद 6. समाचार जानकर राजाका गृहागमन जब राजाके हृदयको उस भावनाको जाना तब एक सेवकने राजासे कहा-हे स्वामी, अपनी सपत्नीके हस्तिसमूह तथा चंचल घोड़ों, रथों और सुभटोंको देखकर परायी लक्ष्मीको सहन न करते हुए पृथ्वीदेवी लौटकर पापहारी जिन मन्दिरको चली गयीं। इसपर महीपति चित्तमें चौंक उठा। "हो सकता है मेरो प्रिय पत्नीने तप स्वीकार कर लिया हो।" ऐसा चिन्तन करके राजा सरोवरसे निकला और वह लौटकर जिन मन्दिरमें गया। भला जिनेश्वर उसके हृदयमें क्या प्रवेश करेंगे जो प्रिये, प्रिये, प्रिये, कहता मर रहा था। उस मूढमतिने देवकी वन्दना भी न की और वह मन तथा पवनकी गतिसे अपने घर चला गया। वहां उसने अपनी कान्ताका मुख- .. कमल देखा / क्या यह पूर्ण चन्द्र है ? नहीं, नहीं, उसमें तो मालिन्य भी है। तब क्या यह कमल है ? नहीं, नहीं, वह तो क्षण-विनाशी होता है। प्रियाके मुखको तो कोई अपूर्व ही शोभा ( गति ) है। उसने प्रसन्नतासे रानीके मनकी बात पूछो। चित्तसे चित्तका आलिंगन हुआ। राजाने कहा-तुम उस उपवनमें क्यों नहीं आयीं / जहाँ पक्षिगण रमण कर रहे हैं ? इसपर उस बालिका ने उत्तर दिया-“हे देव, मैंने अपने दुष्कर्मोंका विनाश किया है, मैंने जिन मन्दिरमें उन जिन , भगवान्की वन्दना की है जो कामदेवके दर्पका दलन करने में उग्र बलशाली हैं। इस रौद्र ध्वनियुक्त संसार रूपी समुद्र में लोग ग्राम, पुर, पट्टन तथा क्रोडाके योग्य नन्दन वन पा लेते हैं तथा प्रत्येक भवमें अपने प्रिय मनुष्यको प्राप्ति भी हो जाती है, किन्तु एक जिनेन्द्र-वचन प्राप्त नहीं होता और दूसरे सम्यकदर्शनरूपी रत्न भी दुर्लभ है। जिस प्रकार पापमें आसक्त व्यक्तिको दारिद्रयके कारण सुखदायी रत्नकी प्राप्ति नहीं होती, उसी प्रकार चारों गतियोंके लाखों दुःखोंको सहकर तथा अति दुर्लभ मनुष्य जन्मको भी पाकर जिसने दुःखहारी तपश्चरण नहीं किया, विषयोंसे मनको नहीं खींचा, एवं दोषरहित अरिहंत देवको नहीं पूजा, उसने अपने आपको ही धोखा दिया // 6 // 7. रानीका स्वप्न तथा राजा-रानीका पुनः मुनि-दर्शन इसके अतिरिक्त जिनमन्दिरमें जो पिहितास्रव नामक मुनि देव हैं उनके मुखसे दिव्यध्वनि निःसृत हुई। उनसे मैंने श्रवण किया कि, "मेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा, जो प्रबल बाहुबलशाली तथा शत्रुओंके बलका मर्दन करनेवाला होगा।" यह सुनकर नृपतिको हर्ष हुआ और वह अपनी प्रिया पृथ्वीदेवीके भोगमें रत रहने लगा / अन्य एक दिन जब देवी आँखें मूदकर पलंगपर सो रही थी तब उसने स्वप्नमें एक उन्मत्त हाथो, वज्र समान नखोंकी कोटिसे हाथियोंको मारनेवाला सिंह, मगरोंसे चलायमान भयंकर समुद्र, चन्द्र-सूर्य तथा प्रफुल्लित कमलोंके सरोवर देखे / 'प्रभात होते ही रानीने अपने पतिसे कहा ओर उन्होंने स्वप्नके फलको उसे समझाया। हे सुन्दरी, तुम्हारे एक पुत्र होगा जो प्रजाका पालन करेगा तथा समस्त पृथ्वीका भोग करेगा। फिर भी अपने मनके सन्देहको दूर करनेके लिए वे दोनों राजारानी जिनमन्दिरको गये। वहां उन्होंने उनके चरणोंमें प्रणाम करके निर्दोष मुनिवर पिहितास्रवसे पूछा P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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