________________ 2. 5. 14 ] हिन्दी अनुवाद 4. पुत्र-जन्मको भविष्यवाणी व धर्मोपदेश ऋषिने कहा-हे कोमलबाहु पुत्री, तुझे धर्मबुद्धि प्राप्त हो। तब पृथ्वीदेवीने अपनी निन्दा की तथा खलोंके समृद्धि-दर्शनको धिक्कारा। फिर प्रार्थना की हे मुनिराज, यह तो कहिए कि हमारे जैसोंके लिए पापहारा तपश्चरण है कि नहीं? गुरुने कहा-तुम विषाद मत करो, शोघ्र ही तुम्हें अपने पुत्रका मुख देखनेको मिलेगा। मनुष्य अपनी लक्ष्मीको क्या समझते हैं ? नये यौवनका नाश होता है और बुढ़ापा आता है। जो उत्पन्न हुआ है उसका पुनः मरण देखा जाता है। उसे लेने भयंकर यमका दूत आ पहुंचता है / श्रीमान्के घरमें दारिद्रय तथा दुःखका महान् भार आ पड़ता है, एक सुन्दर रूप दूसरे अधिक सुन्दर रूपके आगे फीका पड़ जाता है। वीर पुरुष भी रणमें त्रास पाता है। अपना प्रिय मनुष्य भो स्नेहके फीके पड़नेपर अन्य लोगोंके समान साधारण दिखाई देने लगता है। जब चन्द्रमण्डल भी अपनी कान्तिसे ढल जाता है तब क्या मनुष्योंका लावण्य नहीं गलेगा? इस संसारमें कौन सुखी और कौन दुःखी है, सभी कर्मोंकी विडम्बनामें पड़े हैं। ___ अपने काम पड़नेपर लोग लक्ष्मीकी सेवा करते हैं, किन्तु इस संसारमें न कोई राजा है न रंक। जब भयभीत होकर रोता है और प्राण छोड़ता है तब प्रभु भी दीन समान हो जाते हैं // 4 // . 5. पृथ्वीदेवी घर लौटती है, उधर राजाको उसका स्मरण आता है पृथ्वीदेवीने मुनिराजके उस उत्तम वचनको अपने मनमें स्थिर करके रख लिया और वह . सती अपने निवासको लौट आयी। उसका राजप्रासाद बड़े-बड़े उज्ज्वल हारोंसे सज्जित था। उसमें नोले तोरण बंधे हुए थे। उसके औंटे विचित्र थे, वहाँ मदोन्मत्त हाथी चिंघाड़ रहे थे। वह इतना ऊँचा था कि सूर्यको किरणें भी वहां नहीं पहुंच पाती थीं। वह शुद्ध सोनेकी भित्तियोंसे पीला हो रहा था, और वहाँ अनेक मंगल-गीत गाये जा रहे थे। वहां पहुंचकर वह स्निग्ध वर्ण रानी जिसका अनेक नरेन्द्र सम्मान करते थे तथा अनेक कवीन्द्र वर्णन करते थे, अपने सुख आसनपर जा बैठी। उधर उद्यानमें राजा हर्षित होकर सरोवरमें प्रविष्ट हआ। उसने कमल देखा, जिससे उसे अपनी प्रियाके मुखका स्मरण हो आया / वह उसके आनेके मार्गकी ओर निहारने लगा और कुछ बोल न सका। विलासिनी स्त्रियों द्वारा जलसे सींचे जानेपर वह विकार रहित हुआ अपनी आंखोंको बन्द कर रह गया तथा उसे निःश्वास छोड़ते भी लज्जा नहीं आयी। नीलकमलसे प्रहार किया जानेपर भी नृपति हर्षित नहीं हुआ। वह अपने मनमें विचारने लगा कि कलहंसिनीको जीतने वाली, प्रियभाषिणी पृथ्वीदेवी क्यों नहीं आयी ? // 5 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust