________________ 23 2. 3. 22 ] हिन्दी अनुवाद उसकी वयस्या सखीने कहा-“यह समृद्धि आपकी सपत्नी विशालनेत्रा की है जो उद्यान यात्रा पर जा रही हैं।" इसपर राजपुत्री पृथ्वीदेवीने तीव्र सांस ली और चन्द्र बिम्बके समान उज्ज्वल अपने मुख-कमलपर दोनों हाथ रखकर आँखें बन्द कर ली। जिन नेत्रों के द्वारा दुर्जनोंके सुख और अपने सज्जनोंके ऊपर पड़नेवाले दुःख देखे गये, वे प्रिय नेत्र, हे सखि, फूट क्यों नहीं गये ? / / 2 / / 3. ईर्ष्यावश पृथ्वीदेवी जिनमन्दिरको गयी इस प्रकार कहती, तीव्र निःश्वास छोड़ती, कषाय सहती और विषाद वहन करती हुई वह गजगामिनी, धर्मवती, सुशील पृथ्वीदेवी उस जिनमन्दिरको चली गयी जिसका शिखर आकाशसे लग रहा था, जहां कामकी पीड़ाका नाश होता था और जहां दुष्कर्मोंका ध्वंस होता था। वहां उसने ऋषियोंमें श्रेष्ठ व देवोंके देव जिनेन्द्र भगवान्के दर्शन किये। वह स्तुति करने लगी-हें भगवन्, आपकी नागेन्द्र भी सेवा करते हैं। आप असंग, अभंग यथाजातलिंग ( नग्न ), दुःखोंके विनाशक, सुखोंके निवास, गुणोंकी नसेनी ( सोढ़ी ), नयानुसार उपदेशक, अन्धकारके प्रदीप, तपस्याके प्रभाव, अगम्य, निष्पाप, सदा शुद्धभाव, सदा अनन्त-ज्ञानी तथा यशोत्पत्तिकी खान हैं। ऐसे हे देव, आपके सिरपर जल कल्लोलोंसे युक्त गंगा नहीं है, न गले में सर्प है और न मनमें दपं, हाथमें न शूल है, न विशाल कपाल, उरमें न मुण्डमाल है, न साथमें शैलेन्द्रबाला (पार्वती ), फिर भी आप पापोंका नाश करनेके लिए रौद्र ( कठोर ) रुद्र हैं। आप मोक्षगामी ऋषि ही मेरे स्वामी हैं / आप मुझे स्पष्ट बोध और विशुद्ध समाधि प्रदान कीजिए। - सरलस्वभावी पृथ्वोदेवीने कुटिलभावसे रहित परम जिनेश्वरकी वन्दना की और फिर तप्रश्रीके कान्त व इन्द्र द्वारा नमित-चरण भगवान् पिहितास्रव मुनिको प्रणाम किया // 3 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust